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पृष्ठ:बिहारी-रत्नाकर.djvu/१३८

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बिहारी-रत्नाकर

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विहारी-रत्नाकर मिलता ही नहीं। अतः मूल मैं तो वही पाठ रक्खा गया है, पर अर्थ करने मैं अनवर-चंद्रिकादि के अनुसार जो पाठ ठहरता है, वह ग्रहण किया गया है । रबि बंदी कर जोरि, ए सुनत स्याम के बैन । भए हँसँहैं सबनु के अति अनखौंहें नैन ।। २२४ ॥ ( अवतरण )—यह दोहा चीर-हरण के प्रसंग का है । एक समय गोपियाँ नंगी हो कर यमुना मैं नहाती थीं । श्रीकृष्णचंद्र उनके वस्त्र ले कर एक कदंब के वृक्ष पर जा बैठे। उनके बहुत बिनती करने तथा क्रोध दिखान पर, श्रीकृष्ण चंद्र ने कहा कि अच्छा तुम लोग हाथ जोड़ कर सूर्य भगवान् की वंदना करो, तो हम तुम्हारे वस्त्र दे दें । इस बात से उनका यह नटखटपन समझ कर कि यह हमको नग्न देखना चाहते हैं, वे सब मुसकरा पड़ । इसी का वर्णन कवि करता है-. | ( अर्थ )-श्रीकृष्णचंद्र के ये वचन सुनते [ ही कि तुम ] हाथ जोड़ कर सूर्य की वंदना करो [ जिसमें उनके हाथ कुचों पर से हट जायँ ], सभों के ( सब गोपियों के ) अति अनखौहें (रोष से बहुत भरे हुए ) नयन हसाँहें ( हास्योन्मुख ) हो गए ॥ हौं हीं बौरी बिरह-बस, कै बौरी सबु गाउँ । कहा जानि ए कहत हैं ससिहिँ सीतकर-नाउँ॥ २२५ ॥ सीतकर ( शीतकर ) = शीतल किरणों वाला ॥ ( अवतरण )-पूर्वानुराग मैं नायिका का चंद्र की किरणें ताप देती हैं, अतः वह अपने मन में सोचती है कि लोग ने चंद्रमा का नाम शीतकर क्या समझ कर रक्खा है ( अर्थ )-मैं ही विरह-वश (विरह के कारण ) बौरी ( बावली) हो रही हैं [ जिससे मुझे चंद्रमा की शीतल किरणें तप्त झात होती हैं ] अथवा सब ग्राम ही ( ग्राम निवासी समुह ही ) बौरा गया है, [ जिससे उनको ताप देने वाले चंद्रमा की किरणें शीतल लगती हैं । ज्ञात नहीं होता कि ] ये [ लोग ] शशि को [ जो कि संतापित करता है ] क्या जान कर ( किस निमित्त ) शीतकर नाम वाला कहते हैं ॥ अनी बड़ी उमड़ी लखें असिबाहक, भट भूप ।। मंगल करि मान्यौ हियँ, भो मुँहु मंगल रूप ॥ २२६ ॥ असिबाहक = कृपाण धारण करने वाला, तलवरिया ।। भट = योद्धा ।। मंगलु= शुम ॥ मंगलु= मंगल तारा, जिसका रंग हलका लाल माना जाता है ।। ( अवतरण )-कवि मिर्जा राजा जयशाह की शूरता का वर्णन करता है| ( अर्थ )-असिवाहक, वीर राजा ने [ शत्रु की ] वड़ी अनी ( सेना ) उमड़ी ( चढ़ आई ) देख कर [ अपने ] हृदय में [ इस घटना को, यह सोच कर कि तलवार चलाने का