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पृष्ठ:बिहारी-रत्नाकर.djvu/१४६

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बिहारी-रत्नाकर

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बिहारी-रत्नाकर १०३ ददोरनु = ददोरौं की । मच्छड़ इत्यादि के काटने से अथवा और किसी कारण जो फूलन शरीर में, रस्थान स्थान पर, हो आती है, उसी को ददोरा कहते हैं । ( अवतरण )-नायिका का अपने देवर के साथ गुप्त प्रेम है। देवर ने नायिका पर फूल कँके । जिन अंग पर वे फूल लगे, वे सब हर्ष से फूल आए । सखियाँ उन फूलन को ददरे समझ कर कुछ औषधि करने लगी । इस पर नायिका उनके भ्रम पर हँस पड़ी । कोई चतुर सखी ये सब बातें समझ कर किसी दूसरी सखी से कहती है ( अर्थ )-देवर द्वारा फूल से मारे हुए जो जे अंग हैं, से सो [ तो ] हर्षित हो कर फूल उठे हैं [ किसी व्याधि से नहीं फूले हैं, जो उनमें औषधि की आवश्यकता हो ]। [ अतः वह ] देह के ददोरों की भूल कर औषधि करती हुई सखियों पर हँसी ॥ फूले फदकत लै फरी पल, कटाच्छ-करवार । करत बचावत विय-नयन-पाईक घाइ हजार ॥ २४७ ॥ फूले = (१) प्रसन्नता से उमगे हुए । (२ ) प्रतिद्वंद्वी को देख कर शरीर फुलाए हुए ॥ फदकत= ( १ ) चपलता के साथ इधर उधर देखते हुए । ( २ ) कूद कूद कर पैंतरा बदलते हुए ॥ करवार ( करपाल ) = तलवार ।। बिय= दोनों । इस शब्द को बिहारी ने द्वितीय अर्थात् अन्य के अर्थ में भी प्रयुक्त किया है । देखो दोहा नं० १२२ ॥ घाइ (घात ) = घाव, चोट ॥ | ( अवतरण )-गुरुजन मैं उपस्थित नायिका और नायक आपस मैं, नयन के द्वारा, अनेक प्रकार के हावभाव कर रहे हैं। कोई सखी यह लक्षित कर और उनके नयन का रूपक प्याद से कर के दूसरी सखी से कहती है ( अर्थ )—दोनों के नयन-रूपी पायक ( पैदल सिपाही ), पलक-रूपी ढाल [ तथा ] कटाक्ष-रुपी तलवार ले कर, फूले हुए फदकते, हज़ारों [ प्रकारों की ] चोटें करते [ और ] बचाते हैं । चोर्दै करने तथा बचाने का यह भाव है कि जब नायक के नयन कोई प्रार्थनात्मक इंगित करते हैं, तो नायिका के नयन उसको अनदेखा कर के टाल जाते हैं। तब नायक के नयन नायिका के नयन के उस अनदेखे का अनदेखा कर के फिर वही घात लगाते हैं। पहुला-हारु हियँ लँसै, सन की बँदी भाल ।। राखति खेत खरे खैरे खरे-उरोजनु बाल ॥ २४८ ॥ पहुला–इस शब्द का अर्थ हरिप्रकाश-टीका में फूल विशेष लिख कर छोड़ दिया गया है । लालचंद्रिका में इसका अर्थ ‘कुन्ज पुष्प' लिखा है । पंडित हरिप्रसाद ने इसका पाठ ‘प्रफुला' कर के अपनी आर्या में इसका अर्थ कुमुदिनी रक्खा है, और कदाचित् उन्हीं की देखादेखी श्रीदेवकीनंदन की एवं पंडित परमानंद की टीका में भी इसका पाठ ‘प्रफुला' रखा गया है। पं० प्रभुदयालु पांडे ने इसका अर्थ रुई की माला समझा है । हमारी एक १. करिवार ( १, ४)। २. पायक ( १ ) । २. पभुला (१), प्रफुलित { ४) । ४. लसत (४) । ५. सरी ( १, २ ) । ६. खरी ( ५ ) ।