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पृष्ठ:बिहारी-रत्नाकर.djvu/१६०

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बिहारी-रत्नाकर

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विहारी-रत्नाकर ११७ इत्यादि का नाम ही सुन कर उसकी हँसी उड़ाते हैं )। [ देखा, ] आँवारों के गाँव में जाने से [ उस बेचारे का ] सब गुण-गर्व जाता रहा ( अर्थात् उसके गुण का वहाँ कोई ग्राहक न होने के कारण उसे अपने गुणो कोई उपयोगी पदार्थ मानना छोड़ देना पड़ा) ॥ जाति मरी बिछुरी घरी जल-सफरी की रीति । ग्विन खिन होति खरी खरी, अरी, जरी यह प्रीति ।। २७७ ॥ जरी-भाड़ में गई, उफ्फर पड़ने गई, झौसा, जरी इत्यादि का प्रयोग स्त्रियां कसने में करती हैं। वास्तव में तो ऐसे खंड-वाक्य का अर्थ 'भाड़ में जाय', 'उफ्फर पड़ने जाय', झांस, जले इत्यादि है, पर वाक्य-व्यवहार में इनका भूतकालीन प्रयोग व्यवहृत है ॥ ( अवतरण )-नायक पर नायिका की प्रीति प्रतिक्षण बढ़ती जाती है, और अब यहाँ तक बढ़ गई है कि क्षण मात्र के वियोग ही मैं उसके प्राण पर बन आती है। अपनी यह दशा वह सखी से कहती है, अथवा कोई सखी उसकी व्यवस्था किसी अन्य सखी से कहती है ( अर्थ )-है सखी, [ मेरी अथवा उसकी ] यह प्रीति जली ( भाड़ में गई ) । [ यह तो ] क्षण क्षण पर खरी खरी ( विशेष प्रभावशालिनी ) होती जाती है, [ और अब यहाँ तक बारी आ गई है कि मैं अथवा वह ] जल की मछली की भाँति ( जल से बिछुड़ने पर जैसे मछली की दशा होती है, वैसे ही ) [ प्रियतम से ] घड़ी भर [ भी ] बिछुड़ी हुई मरी जाती हूँ [ अथवा मरी जाती है ] ॥ पिय-प्राननु की पाहरू, कति जतन अति आपु । जाकी दुसह दसा पेयौ सौतिनिहूँ संतापु ॥ २८ ॥ ( अवतरण )--प्रोषितपातका नायिका की दशा विरह से ऐसी दुःसह हो रही है कि देखने वाल को उसके जीने मैं संदेह है। नायक का प्रेम उस नायिका पर ऐसा अधिक है कि वह उसके प्राण की रक्षक समझी जाता है, अर्थात् लागाँ को यह भावना है कि यदि इस नायिका के प्राण पर श्रा बनी, तो नायक का भी जाना कठिन है । इसी भावना के अनुसार उसकी सौत उसको व्याधि के शमन को स्वयं प्रयत्न करन में अत्यंत कष्ट पा रही है, अथवा उसके वियाग ताप से, उसके सन्निकट उपस्थित रहने के कारण, संतप्त हो रहा है। यही वृत्तांत कोई सखी किसी सखा से कहता है ( अर्थ )-[यह हमारी प्यारी सखी ] प्रियतम के प्राणों की [ ऐसी आवश्यक ] पहिरू (रक्षक ) है | कि ] जिसकी दुःसह ( कठिनता से सहे जाने के योग्य ) दशा से आप ( स्वयं ) अत्यंत यत्न ( उसकी व्याधि के शमन करने का उद्योग ) करती हुई सौत पर भी संताप ( कष्ट, दुःख ) पड़ा है ॥ १. बिछैरें ( २ ) । २. छिन छिन ( १, २ ), छिनु छिनु ( ४ ) । ३. के ( ३, ४, ५ ) ।। ४. करत ( ३, ५) । ५. परै ( ३ ), परे ( ४, ५)।