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बिहारी-रत्नाकर


बिहारी-राफर अहे, कहै न कहा कह्यौ तोस नंदकिसोर ।। बड़बोली, बलि, होति केत बड़े दृगनु हैं जोर ॥ २७९ ॥ बड़वोली = गर्वगुत बड़ी बड़ी बातें बोलने वाली ॥ जोर ( फ़ारसी जोर )= बल ।। ( अबतरण )- कलहांतरिता नायिका का मान अभी छूटा नहीं है, और वह बैठी हुई कुछ अंडबंड बक रही है कि वे बड़े झूठे तथा कपटी हैं' इत्यादि । सखी उसको समझाने और मनाने के निमित्त कहती है ( 4 )--- अहे ( हे सखी ), [ तु स्पष्ट ] कह न [ कि ] नंदकिशोर ने तुझसे क्या कहा है, [ जो तू एसे रोप भरे वचन कह रही है ]। मैं वलि जाऊँ, [ तू अपने] बड़े दृगों के बल पर ( अभिमान से ) वड़वेली क्यों होती है [ देख, वड़ा बाल बोलना अच्छा नहीं होता ] ॥ सखी के वचन बड़ी चातुरी के हैं। वह नायिका को बड़बोली कह कर लज्जित भी किया चाहती है, जिसमें उसका गर्व जाता रहे, और बड़े दृगनु नैं जोर' कह कर उसके नेत्रों की प्रशंसा भी करती है। इसके अतिरिक्त उसके मुग्न से नायक के वे वचन भी सुनना चाहती है, जिनके कारण वह रुष्ट हो रही है, जिसमें कि उसे समझाने का अवसर मिले ॥


----- दियौ जु पिथ लम्वि चखनु मैं खेलत फाग-खियालु ।

बाढ़ हूँ अति पीर सु न काढ़त बनतु गुलालु ॥ २८० ॥ खियालु = खल । ५२८-संख्यक दोहे में भी बिहारी ने यह शब्द इसी अर्थ में प्रयुक्त । ( अवतरण )--- नायक ने हाल के खेल मैं नायिका की अँखि मैं गुलाल डाल दिया है। उससे यद्यपि नायिका को पड़ा हो रही है, तथापि, यह सोच कर कि यह गुलाल नायक के हाथ का है, वह उससे निकालत नहीं बनता । यह प्रमाधिक्य सखी सखी से कहती है-- ( 14 )-- भियतम ने फाग का खेल खेलते हुए जो [ गुलाल ] लख कर ( ताक कर )[ उसकी ] ऑखा में दिया ( डाल दिया ), वह गुलाल [ नायिका से ] पीड़ा के बहुत बढ़ते हुए भी काढ़ते ( आँखों से निकालते ) नहीं बनता ।। = = = मैं तपाइ त्रयताप स राख्यौ हियौ भानु । मति कबहुँक आएँ यहाँ पुलकि पसीजै स्याम् ॥ २८१ ॥ त्रयताप = तीनों दुःख । संसार में दुःख तीन प्रकार का माना जाता है—(१) प्राधिभौतिक, जो किसी सांसारिक विषय से प्राप्त होता है । ( २ ) अधिदैविक, जो किसी देवता से मिलता है । ( ३ ) आध्यात्मिक, जो अपनी आत्मा के कारण होता है । हमाम ( अरबी हम्माम ) = स्नान करने की कोठरी, जो गरम कर दी जाती है । इसमें तीनों श्रोर से गरमी पहुँचाई जाती है—छत से, नीचे से तथा दीवारों से । इसी विचार से हृदय-रूपी हम्माम का तीनों ताप से तपाना कहा गया है । हम्माम में जाने से सब रोंगटे खुल जाते हैं, और १. कयौ कहा ( २ ) । २. कित ( ४, ५) । ३. बनें (२) ४. कबहूँ ( २, ३, ४, ५) ।