सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:बिहारी-रत्नाकर.djvu/१६५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
१२२
बिहारी-रत्नाकर


बिहारी-रत्नाकर कत सकृचत, निधरकफि, रतियौ खारि तुम्हें न । कहा करौ, जौ जाई ! लगें लग हैं नैन ।। २८९ ॥ ( अवतर ) -खंडितः नायिका का वचन नायक स --- ( अर्थ )-- तुभ ] संकुचि। क्यों होते हो, निधड़क ( निःशंक ) [ जहाँ जी चाहे ] फिरा करो, [ ऐड करने में ] तुम्हें रत्ती भर भी ‘खेरि' ( दोष) नहीं है । [ तुम ]क्या करो ( तुम्हारा क्या यश है ), यदि [ तुम्हा ये 3 गाहें (चटपट रीझ जाने वाले ) नयन [ बरस ] जा कर [ शिजी ले ]ला जा { आसक्त हो जायें ), [ और तुम्हें भी बलात् खाँच कर उधर ले जायँ ॥ । वास्तव में नाभि का वचन-चानुरी से यह कहती है कि तुम बड़े निर्लज्ञ हो, तुम्हारा स्वभाव ही ऐसा पड़ गया है कि चाहे जिस पर री कर उसके यहाँ चले जाते हो । यदि तुम न जाओ, तो क्या तुम्हारे नयन खन कर ले जाथें ।। अापु दियौ भनु फेरि लै, पल दीनी पीठि। कौन चाल यह रावरी, लाल, लुकावत डीठि ॥ २९० ॥ पलटे = वदले में ।। लुकावत = छिपाते हो, चुराते हो । ( 'अ'तरण ) : परकीया नायिका नायक को उलाहना दती है-- ( अर्थ )-अपना दिया आ मन लौटा ले कर [ उसके ] बदल में [ आपने मुझको अब ] पीठ दी ( मुझले ह फेर लिया ) । हे लाल ! आपकी यह कौन [ भलमंसी की ] चाल है [ कि अब मुझसे ] आँखें [ भी ] चुराते हा ॥ गोपिनु सँग निास सरद की रमत रसिकु रस-रास । लहछेह अति गतिनु की सदनु लखे सव-पास ॥ २९१ ॥ रस-रा--क प्रकार के गोपजातीय नृत्य को रास कहते हैं। इसमें बहुत से स्त्री पुरुष एक साथ, मंडल बांध कर, नानते हैं । ‘र-रा' का अर्थ रसाला रास, अर्थात् अानंदोत्पादक रास, हुआ । लहाछेह-यह शब्द संस्कृत के लक्ष | 7 से बना ज्ञात होता है । नृत्य, गान तथा वाद्य में किसी निबंध को समता से, नियत काल में', सः। करन का लय कहते हैं । यह लय तीन प्रकार की होती हैं—विलंबित, मध्य तथा द्रुत । किसी ने पंव की भरे धरे (तनः उनकी बिताना लय कहलाती है। जितना काल किसी निबंध के धीरे धारे बरतन में लगता है, यदि उसका प्राधा कान लगाया जाय, तो उस निबंध में मध्य लय होगी । मध्य लय में जितना काल लगता है, यदि उससे भी ग्राधे काल में वह निबंध बरती जाय, तो उसकी द्रुत लय हो जाती है। यदि ग्रौर भी शोधता की जाय, तो अति द्रुत लय होगी । नृत्य के संबंध में लघ्वाक्षेप का अर्थ अति लाघव अर्था । फुत से पैरा का उठाना रखना, अर्थात् द्रुत लय में नृत्य करना है ॥ गति-नृत्य के १. खारति मेन ( ३, ५) । २. करा ( २, ३, ४, ५) । ३. जाहिँ ( २ ) । ४. लगे ( २, ४, ५ ) ।। ५. लकावति ( १, ३ ) । ६. लहछेह ( २ ), ले ह ( ३, ५) । ७. सय निरखे ( २ ) ।