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पृष्ठ:बिहारी-रत्नाकर.djvu/१६४

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बिहारी-रत्नाकर

( अवतरण )–नायिका उत्तमा कंडिता है। यद्यपि नायक के रात भर अन्यत्र रहने के कारण उसके हृदय मैं क्रोधाग्नि धधक रही है, तथापि उसे अति खज्जित देख कर वह उससे क्रोध के साथ बोलते खजाती है। सखी-वचन सखी से—

( अर्थ )-[ नायक के ] रात को अन्यत्र बसने की रिसों से [ यद्यपि वह नायिका ] हृदय में ( भीतर ही भीतर ) बहुत जल रही है, तथापि [ नायक को ] बहुत लजित देस कर [ उसे ] झुकते लज्जा आई ॥

सुरंगु महावरु सौति-पग निरखि रही अनखाइ । पिय-अंगुरिनु लाली लखें खरी उठी लगि लाइ ॥२८७॥

सुरंगु= अच्छे रंग वाला ॥ साइ= अग्नि, लवर ॥ ( अवतरण )-अन्यसंभाग-दुःखिसा नायिका का वृत्तांत सखी मस्सी से कहती है-- ( अर्थ )-सौत के पाँव में सुंदर रंग का महावर देख कर [ यह नायिका ] अनखा रही थी ( भीतर ही भीतर ईर्ष्या से दुखी हो रही थी कि सौत भी ऐसी सुघर है, जो ऐसा सुरंग महावर लगाती है)। [ इतने ही में ] प्रियतम की अंगुलियों में लाली देख कर [ इस अनुमान से कि उसने स्वयं सौत के पाँव में महावर लगाया है, उसके हृदय में ] भली भाँति आग लग उठी ॥ मानहु मुँह-दिखरावनी दुलहिहँ करि अनुरागु । सासु सदनुः मनु ललन हैं सौतिनु दियी सुहागु ।। २८८ ॥ मुँह दिखरावनी= मुंह-दिखाई । जब कोई नई दुलहिन म्याह कर आती है, तो सास, ससुर इत्यादि ससुराल के प्रायः सभी लोग उसे आभूषण आदि वस्तुएँ उपहार के रूप में, उसका मुँह देख देख कर, देते हैं। यह उहपार दुलहिन का निज धन हो जाता है । सुहागु ( सौभाग्य )—यहाँ इसको अर्थ, इस कहावत के अनुसार कि “जाकों पिय प्यारी चहै वह सुहागिन नारि, अपने ऊपर का प्रियतम-प्रेम होता है। ( अवतरण )-नई दुलहिन विवाहित हो कर आई है। आते ही उपकी सुथराई तथा शीत पर रीझ कर सास ने उसका घर का प्रभुत्व, नायक ने उसके रूप तथा गुण पर अनुरक हो कर अपनी मन एवं सार्ती ने अपने को उसके बराबर न समझ कर प्रियतम का प्यार दे दिया । यह सब उसको ऐसे अल्प काल ही में प्राप्त हो गया, मानो मुंह-दिखाई ही में मिल गया । सखी-वचन सभी से--- ( अर्थ )–सास ने गृह, नायक ने भी मन [ तथा ) सौतों ने सौभाग्य ( अपने अपने ऊपर का पति-प्रेम ) [ इसको ऐसा चटपट तथा सदा के लिए ] दे दिया, मानो दुलहिन को मुँह-दिखाई [ ही ] में अनुराग कर के दिया है] ॥ ‘मानहु' कहने का अभिप्राय यह है कि ये पदार्थ उस आते ही मिल गए, और उन पर उसका ऐसा स्वत्व हो गया कि जैसा मुंह-दिखाई में प्राप्त पदार्थों पर होता है। १. सहनि ( ३, ५) । २. सौतिनि ( २, ४) । ३. दयो ( ३, ५)।