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पृष्ठ:बिहारी-रत्नाकर.djvu/१७४

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बिहारी-रत्नाकर

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११ बिहारी-रत्नाकर किए जायें। [ये ] आँट ( दार्दै) में पड़ने पर पैरों में लग कर ( १. पैरों पर गिर कर । २. पैरों में चुभ कर ) काँटे की भाँति प्राणों को हर लेते हैं ( अत्यंत कष्ट देते हैं ) ॥ सखि, सोहति गोपाल कै उर गुंजनु की माल । बाहिर लसति मनौ पिए दावानल की ज्वाल ॥ ३१२ ॥ दावानल = दावाग्नि, जंगल की आग । एक समय नंद, यशोदा तथा अन्य व्रज-जनों के साथ श्रीकृष्णचंद्र जंगल थे । आधी रात को चारों ओर अाग लग गई, जिससे सब लोग बहुत घबरा उठे । तब श्रीकृष्णचंद्र ने उस आग को पा कर सबका दुःख दूर किया । यहां ‘दावानल' शब्द का वाच्यार्थ तो वही वन की अग्नि है, पर गौणीसाध्यवसाना लक्षणा शक्ति से इसका अर्थ दावानल-सदृश विरहाग्नि है ।। ( अवतरण )-नायिका अनुशयाना है। उसने गंज के कुंज मैं नायक से मिलने का संकेत बद! था, पर किसी अड़चन से वह वहाँ समय पर न पहुँच सकी । नायक संकेतस्थल से निराश तथा दुखी हो कर लौट आया, और यह सूचित करने के निमित्त कि मैं संकेतस्थल हो आया हूँ, गुंज की माला पहने हुए नायिका के घर के मार्ग से जा रहा है। उसको देख कर नायिका जो उस समय गुरुजन में बेटी है, अपनी अंतरंगिनी सखी से कहती है। गुरुजन के सुनने में तो वह सामान्यतः श्रीकृष्णचंद्र की गुंजमाला पर एक नीरस सी उत्प्रेक्षा कह देती है; पर सखी से, जो कि उसके वृत्तांत से परिचित है, वह यह कहती है कि श्रीकृष्णचंद्र के हृदय पर गुंजमाला मुझे ऐसी लगती है, मानो उस कुंज मैं मुझे न पा कर इनको जो दुःख-रूपी दावाग्नि का पान करना पड़ा, उसी की ज्वाला बाहर हो कर अपक्षपा रही है। इसे देख कर मेरी आँखों को बड़ा ताप होता है-- ( अर्थ )-हे सखी, गोपाल के उर पर गुंजों की माला [ ऐसी ] सोहती है, मानो [ उनके द्वारा ] पिए गए दावानल ( १. प्रज-लीला में पी गई दावाग्नि । २. संकेतस्थल में मेरे न मिलने से सही हुई दुःखाग्नि ) की ज्वाला बाहर [ निकल कर ] लस रही है (लपलपा रही है) ॥ ‘सोहति' तथा 'लसति' शब्द का प्रयोग यद्यपि द्वितीय अर्थ के पक्ष में समीचीन नहीं है, परंतु नायिका को इन्हें गुरुजन को सुनाने के निमित्त प्रयुक करना पड़ा । इसके अतिरिक्त सोहना, जसमा इत्यादि शब्द कविता मैं ऐस सामान्य रूप से प्रचलित हो गए हैं कि केवल ‘स्थित होने', 'दिखाई देने' इत्यादि का अर्थ देने लगे हैं। गहिली, गरबु न कीजियै समै-सुहागहिँ पाइ ।। जिय की जीवनि जेठ, सो माह ने छाँह सुहाइ ॥ ३१३ ॥ गहिली = बावली ॥ समै-सुहाग = ऐसा चुहाग जो किसी अवसर विशेष पर प्राप्त हो जाय ।। माह = माघ मास ।।। (अवतरण )-कहांतरिता नायिका के यहाँ से नायक उसकी सौत के यहाँ चला गया है, जिससे वह गर्व कर रही है। उससे कहांतरिता के पक्ष की सस्त्री कहती है १. सोमित ( १, ४) । २. बाहिरि ( ३ ), बाहरि ( ४, ५ ) । ३. मैं* ( २ ) ।