पृष्ठ:बिहारी-रत्नाकर.djvu/१७५

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१३२
बिहारी-रत्नाकर


१३२ बिहारी-रत्नाकर ( अर्थ )-हे यावली, समय का (संयोग-वश का ) सुहाग ( पति-प्रेम) पा कर गर्व न किया जाय ( तू गर्व मत कर )। [ देख, जो ] छाँह जेठ में जी की जिलाने वाली होती है, वही माघ में नहीं सुहाती ( सही जाती ) ॥ समय-सुहाग कह कर सखी यह व्यंजत करती है कि तुझ पर वास्तव में पति का प्रेम नहीं है, प्रत्युत वह इस अवसर पर, मरी सखी से कुछ अनबन हो जाने के कारण, तेरे यहाँ चला आया है ॥ | सखी का अभिपय इस कहने से यह है कि सौत का उत्साह भंग हो जाय, जिसमैं उसकी कांति उतर जाय, और वह नायक की आँखों मैं भडा लगने लगे । हँसि, हँसाइ, उर लाई उठि, कहि न रुखौंहें बैन । जाकत थकित है तकि रहे तर्कत तिलौंछे नैन ॥ ३१४ ॥ तिल ॐ = तेल से पछि हुए । ग्राख का सुरमा छुड़ाने के लिए स्त्रियाँ तेल से भागे हुए कपड़े से उन्हें पोंछती हैं। उस समय तेल लग जाने के कारण शाखें कुछ मिचमिची सी हो जाती हैं, और उनमें कुछ पानी भी आ जाता है । तिलाछ का अर्थ यहाँ तिलांछ से होता है । ( अवतरण )--खंडिता नायिका से सखी का वचन--- ( अर्थ )-[ नायक तेरे ] तिलांछ नयन देख कर जकित (स्तंभित ) [ तथा ] थकित ( श्रमित ) हो कर देख रहे हैं , [ अतः अब तू क्षमा कर के ] रूखे वचन मत कह, [प्रत्युत स्वयं ] हँस [ तथा उनको भी ] हँसा, [ और ] उठ कर [ उनको ] कलेजे से लगा ले । तीज-परष सौतिनु सजे भूषन बसन सरीर । सबै भरगजे-मुंह कैरी ईहीं मरगजें चीर ।। ३१५॥ मरगजे= मले दले, मलिन । ( अवतरण )-तीज का त्योहार है । नायिका ने पूर्व रात्रि मैं नायक के साथ रत्युत्सव का जागरण किया है । अतः वह आलस्य के कारण अभी तक पर्वोचित भूषण वसन धारण नहीं कर सकी है, अथवा प्रियतम के प्रस्वेद से भीनी हुई साड़ी के उसने, अति प्रिय होने के कारण, अभी तक नहीं बदला है । उधर उसकी संत ने नए नए वस्त्र तथा आभूषण धारण कर के अपने अपने शरीर सुसज्जित कर लिए हैं। पर इस नायिका की इसी मरगजा साड़ी से यह अनुमान कर के कि वही प्रियतम को परम प्रिय है, सभ के मुख फीके पड़ गए । इसी का वर्णन सखी सखी से करती है ( अर्थ )-तीज के त्यौहार को [ इसकी ] सौतों ने भूषण वसन से [ अपने ] शरीर सजे, [ पर इसने] इसी मरगजे चीर से सभी को मरगजे-मुंह ( मलिन-मुख ) कर दिया । १. है कित रही ( ३ ) । २. तकति ( १ ), तकित ( २, ५ ) । ३. तिरी® ( ४ ) । ४. करे ( २ )। ५. इहे (३, ५) ।