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बिहारी-रत्नाकर

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विवारी-रखाकर १५१ (अर्थ)-[ उसकी ] गरी छिगुनी, अरुण नख, [ एवं नीलम का ] श्याम छल्ला [ये तीनों मिल कर कैसी ] छवि देते हैं ! यह (इनसे बनी हुई ) त्रिवेणी क्षण मात्र सेवन कर के नयन रति-रूपी मुक्ति प्राप्त करते हैं ( अर्थात् इनको क्षण मात्र देख कर नयन प्रीति में ऐसे निमग्न हो जाते हैं कि संसार से छुटकारा पा जाते हैं ) ॥ उर मानिक की उरबसी डटत घटतु दृग-दागु । छलकतु बाहिर भरि मनौ तिय-हिय-अनारा ।। ३३९ ॥ दागु ( दग्ध )= दाह । तिय-हियको-अनुरागु= स्त्री-संबंधी हार्दिक अनुराग ॥ ( अवतरण )--नायक ने भूषण वसन का विपर्यय कर के अन्य स्त्री के साथ विहार किया था। प्रातःकाल उसने सब वेष तो बदले, पर वह उरबसी उतारना भूल गया, और उसे पहने ही इस नायिका के यहाँ चला आया । सो खाडता नायिका उसे देख कर कहती है | ( अर्थ )-[ तुम्हारे ] उर पर को मानिक की उरबसी पर [ जिसको मैं पहचानती हैं ]डटते हुए (ठहरते हुए) [मरे ] नेत्रों का 'दाग' (दाह, जो अब तक तुम्हें न देखने के कारण हो रहा था ) घरता है । [ यह ऐसो शोभा देती है ] मानो [ उस] स्त्रीविषयक [ तुम्हारे] हृदय का अनुराग, भर कर ( परिपूर्ण हो कर ), बाहर छलक रहा है । ‘घटतु' का अर्थ यहाँ विपरीत लक्षणा से ‘बढ़नु' समझना चाहिए । ‘तिय-हिय-अतुरगु', इस समस्त पद मैं कुछ विजक्षणता है, और इसी से इस दोहे के अर्थ मैं कठिनता पड़ती है । वास्तव में ‘अनुरागु' शब्द का संबंध ‘तिय' शब्द के साथ है । तिय-अनुराग, अर्थात् सिय-विषयक अनुराग, तो सामान्य समास है । पर 'अनुरागु' शब्द का विशेषण ‘हियो’ "तिय' तथा 'अनुरागु' के बीच में आ गया है, जिससे कुछ विलक्षणता प्रतीत होती है । सहज सेत पँचतोरिया पहिरत अति छवि होते। जलचादर के दीप लौं जगमगाति तन-जोति ।। ३४० ॥ सहज = सामान्य अर्थात् जिसमें फूल, बूटे इत्यादि नहीं बने हैं ॥ पंचतेरिया ( पॅसतोलिया, अर्थात् पाँच ताशे का )-एक प्रकार का बहुत महीन कपड़ा ऐसा हलका बनता है कि उसकी एक पूरी साड़ी तौल में केवल पाँच तोल भर होती है । इसी को पंचतोलिया कहते हैं। उर्दू में इसका नाम अबेरवाँ है ॥ जलचार-धतिका के किसी किसी उद्यान में किसी ऊंचे स्थान से जल का झाना तथा विस्तृत प्रवाह गिराया जाता है । यह जलचादर कहलाता है। किसी किसी जलचादर के पीछे गवाक्ष बना कर उनमें दीपकों की पंक्ति जला दी जाती है । रात्रि के समय जलचादर के पीछे से वह जगमगाती हुई दीपावली बड़ी शोभा देती है। इसी दीपावली को बिहारी ने 'जलचादर के दीप' कहा है ॥ ( अवतरण ) सखी नायक से नायिका के शरीर की शोभा का वर्णन कर के न जाती है ( अर्थ )-सामान्य श्वेत पँचतोलिया [ साड़ी ] पहनने से [उसकी ] छवि अति १. झलकतु ( २, ३, ५)। २. दुति (४) । ३. तनु ( ३, ५ )।