पृष्ठ:बिहारी-रत्नाकर.djvu/२०

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संपादकीय निवेदन आपकी मडली में बैठकर न हँसना कठिन काम है। आपकी बातचीत में बड़ा मज़ा आता है । स्वभाव आपका बहुत ही मृदुल है। स्मरण-शक्ति बहुत तीव्र है। बचपन ही से आप व्यायाम-प्रिय हैं, और अपना जीवन बड़े संयम के साथ व्यतीत करते हैं। इसीलिये आप इस समय, ६० वर्ष की अवस्था में भी, ४५ वर्ष से अधिक के नहीं हुँचते । वैद्यक का आपको बहुत शौक है । | रत्नाकरजी इस समय व्रज-भाषा के सर्वश्रेष्ठ कवि और ज्ञाता समझे जाते हैं। आपकी कविताई बड़ी सरस और सुंदर होती हैं । आपके कवित्त देव, पद्माकर आदि के कवित्तों का ध्यान दिला देते हैं। हमारी राय में आपकी-जैसी सरस, मधुर, विशुद्ध और परिमार्जित भाषा लिखने में व्रजभाषा के बहुत कम कवि समर्थ हुए हैं । प्राकृत का भी आपको अच्छा अभ्यास है । शिलालेख आदि पढ़ने और प्राचीन शोध के कार्य में आपको विशेष रुचि है। कानपुर के प्रथम अखिल भारतीय हिंदी-कवि-सम्मेलन का सभापति-पद आप विभूषित कर चुके हैं । हिंडोला, हरिश्चंद्र, समालोचनादर्श, घनाक्षरी-नियम-रत्नाकर आदि कई काव्य-पुस्तकें अपने लिखा हैं, जो प्रकाशित भी हो चुकी हैं। अन्यान्य गुणों के साथ आपमें एक अवगुण भी है । वह यह कि आप बड़े आलसी हैं । आपसे कुछ लिखवा लेना आसान नहीं । सख़्त तक़ाज़े कीजिए, तब जाकर कहीं कुछ लिखेंगे । गंगावतरण, कलकाशी, अष्टक-रत्नाकर और ऊधव-शतक, ये चार काव्य-ग्रंथ इधर अपने और लिखे हैं, जो शीघ्र ही प्रकाशित होंगे । अाशा है, रत्नाकर जी भविष्य में भी भाषा-भांडार को अनेक भव्य और नव्य रत्नों से भरते रहेंगे। अस्तु, ‘बिहारी-रत्नाकर' प्रेमी पाठकों के कर-कमलों में इस आशा के साथ सहर्ष अर्पित किया जाता है कि वे इसका उचित आदर करके इसे स्थायी साहित्य में चिरस्थायी स्थान प्रदान करेंगे । | लखनऊ; ? दुलारेलाल भार्गव १ । ८ । २६ ,