पृष्ठ:बिहारी-रत्नाकर.djvu/१९

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१२ विहारी-रत्नाकर पद सुशोभित करते रहे । फिर मुगल-राज्य के नष्टप्राय हो जाने पर जहाँदारशाह के साथ काशी चले आए, और वहीं बस गए। | बाबू पुरुषोत्तमदासजी फ़ारसी के पूरे पंडित थे । हिंदी कविता के प्रति भी उन्हें प्रगाढ़ प्रेम था। अनेक अच्छे-अच्छे कवि उनके मकान पर आया करते थे । जो बाहर से आते, वे उन्हीं के पास ठहरते । भारतेंदु बाबु हरिश्चंद्र उनके मित्र और संबंधी थे । अतः वह भी उनके पास प्रायः आते थे । बालक रत्नाकरजी इस गोष्ठी में अक्सर बैठते थे, और कभी-कभी कुछ बोल भी उठते थे । एक दिन इसी प्रकार आपके कुछ कहने पर भारतेंदुजी ने कहा-“यह लड़का कभी अच्छा कवि हागा । भारतेंदुजी की यह भविष्यद्वाणी सोलहो अाने ठीक उतरी । रत्नाकरजी पर इस सत्संगति का इतना प्रभाव पड़ा कि वह भी उर्दू और फिर हिंदी में कविता करने लगे । जगन्नाथदासजी की सारी शिक्षा काशी में ही हुई । कॉलेज में आपकी द्वितीय भाषा फ़ारसी थी । फ़ारसी लेकर ही उन्होंने सन् १८९१ में बी० ए० पास किया, और एम० ए० में भी फ़ारसी पढ़ी। किंतु किसी कारण परीक्षा न दे सके । सन् १९०० के लगभग आवागढ़-राज्य में आप प्रधान कर्मचारी नियुक्त हुए, और वहाँ दो वर्ष तक योग्यता के साथ काम किया। किंतु वहाँ की आब-हवा अनुकूल नहीं हुई--आप अस्वस्थ रहने लगे। इसालये उक्त पद का त्याग करके काशी लौट आए । फिर वहाँ से अपने समय के अनन्य हिंदी-प्रेमी रईस, अयोध्या-नरेश स्वर्गीय महामहोपाध्याय महाराजा सर प्रतापनारायणसिंह बहादुर के० सी० आई० ई० ने आपको, सन् १९०२ में, बुलाकर अपना प्राइवेट सेक्रेटरी बना लिया, और आपकी योग्यता और कार्यदक्षता से प्रसन्न होकर थोड़े ही दिन बाद आपको चीफ़ सेक्रेटरी के उच्च पद पर आसीन किया। सन् १९०६ के अंत में, महाराज के अकाल में कालकवालत हो जाने पर, श्रीमती महारानी अवधेश्वरी ने आपको अपना निज मंत्री ( प्राइवेट सेक्रेटरी ) नियत कर लिया । तब से आप इसी पद पर रहकर रियासत का काम कुशलता के साथ कर रहे हैं । काठन अभियागा आदि में राज्य को इन्होंने बड़ी मदद पहुँचाई है। राजकाज के झंझटों में पड़े रहने के कारण इन्हें एक सुदीर्घ समय तक साहित्य-सेवा से वंचित रहना पड़ा। हर्ष की बात है, इधर ३-४ वर्षों से मित्रों के साग्रह अनुरोध से आप साहित्य-मंदिर में आकर सरस्वतीदेवी की आराधना करने लगे हैं। प्रेजुएट होने पर भी रत्नाकरजी सनातनधर्म के पक्के अनुयायी हैं, और हिंदू-सभ्यता के पूरे समर्थक । आपको प्रसिद्धि की परवा नहीं है । यही कारण है कि आपकी वास्तविक योग्यता से, थोड़े दिन पहले, बहुत कम लोग परिचित थे। आप बड़े हँसमुख और जिंदादिल आदमी हैं।