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बिहारी-रत्नाकर

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बिहारी-रत्नाकर १७३ प्रतिम-दृग-मिहचत प्रिया पानि-परस-सुख पाइ । जानि पिछानि अजान लौं नैकु न होति जनाइ ॥ ४२२ ॥ जनाइ = लक्षित ॥ ( अवतरण )–नायिका साखियाँ के बीच मैं खड़ी है। नायक पीछे से आ कर अपने हाथ से उसकी आँखें बंद कर लेता है । नायिका, नायक के कर-स्पर्श का सुख पा कर, उसे पहचान कर भी अनजान सी बन जाती है, और उसे अपना पहचान लेना लाक्षप्त नहीं होने देती, जिसमें उसे करस्पर्श का सुख कुछ देर तक मिलता रहे । कारण, इस ख-मिचौनी के परिहास में जब आँखें बंद करने वाले को वह व्यक्ति, जिसकी आँखें बंद की जाती हैं, पहचान लेता है, तो अाँखें बंद कर लेने वाला हँस कर हाथ हटा लेता है । सखी-वचन सखी से-- ( अर्थ )-प्रियतम के दृग मीचते [ ही ] प्रिया ( प्यारी नायिका ), हाथ के स्पर्श का सुख पाकर, [ यद्यपि आँख मीचने वाले को पहचान लो गई, पर इस अभिप्राय से कि स्पर्श का सुख कुछ समय तक प्राप्त रहे, वह जान पहचान कर भी अजान सी बनी रही, और उसने अजान बनने की क्रिया ऐसी चातुरी से की कि वह ] जान पहचान कर [ भी ] अजान सी [ बनी हुई ] किंचिन्मात्र [ भः ] लक्षित नहीं हुई ॥ देख जागेत वैसियै साँकर लगी कपाट । कित है आवतु, जातु भजि, को जानै, किहिँ बाट ॥ ४२३ ॥ ( अवतरण )-- नायिका नायक को स्वप्न में देखा करता है, पर अपने भोलेपन तथा प्रेम की मुग्धता से समझती है कि वातव में वह मेरे सोते समय आता है । पर फिर किवा मैं ज्यों की याँ साँकर लगी हुई देख कर वह चकित हो जाती है कि ना ५क किस बाट से आता-जाता है। यही बात वह अपनी अंतरंगिनी सखी से, अश्व अपने मन मैं, कहती है ( अर्थ )-जाग कर [ तो में ] कपाट ( किवाड़ ) में वैसी ही [ जैसी में सोने के पहिले लगा देती हूँ ] काँकर लगी हुई देखती हूँ, [ पर वह जो मेरे सोते समय आता है, सो ] कौन जाने किस ओर से हो कर ( किस मार्ग से ) आता है, [ और फिर ] किस बाट ( मार्ग ) से भाग जाता है ॥ करु उठाइ धैर्घटु करत उझरत पट-गॅझरौट। सुख-मोटें लूट ललन लखि ललना की लौटं ।। ४२४ ॥ गुझरौट=आँचल का वह सिमटन पड़ा हुया भाग, जो हाथ को ढके रहता है ।। लौट-अन्य टीकाकारों ने इस दोहे में, लौट' के स्थान पर लोट' पाठ मान कर, उसका अर्थ 'त्रिबली' अथवा 'पेटी' किया है। पर 'गुझरौट' के अनुरोध से यह शब्द ‘लोट' नहीं हो सकता । इसे 'लोट' करने से 'गुझरौट' को ‘शुभरोट' करना पड़ता है, जो उच्चारण-व्यवहार में सुनने में नहीं आता । अतः हमने 'लौट' का अर्थ 'लौट १. मचत ( ३, ५ ) । २. लखाइ ( २, ३, ५) । ३. देख्यो ( ४ ) । ४. जागित ( १, ४ ), गति तो ( २ ) । ५. चूँघट ( ५ ) । ६. उसरत ( २, ४ ) { ७. गुझरोट ( ३, ५) । ८. लौंटं ( २ )।