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बिहारी-रत्नाकर

( मर्ग )-2 काक! [तु] एस दिन (योड़े दिन) मादर पा कर [ भले ही अपना बज्ञान (भात्मश्लाघा ) कर ले।। पर वह समझ रख कि] तेरा [वह] सम्मान तभी तक है, जब तक भासपक्ष (भर्थात् यह अवसर विशेष ) है [ अभिप्राय वह कि तुममें वास्तव में कोई सन्मान के योग्य गुरु नहीं है, पर इस समय ऐसा भवसर ही उपस्थित है कि तेरा भादर करना पड़ता है, भतः तुमको इस भादर पर गर्व करना चाहिए,

मरतु प्यास पिँजरा-पर्यौ सुआ समै कैँ फेर।
आदरु दै दै बोलियतु बाइसु बलि की बेर॥४३५॥

बलि-पितृश्राद्ध अथवा बलि के समय वायस-बलि भी की जाती है। अर्थात् काक के निमित्त भी एक भाग निकाला जाता है, जिसके खिलाने के लिए कौआ पुकार पुकार कर बुलाया जाता है।

(अवतरण)-समय विशेष की आवश्यकता के अनुसार कहीँ गुणी का निरादर एवं मूर्ख का आदर देख कर कोई इस घटना का वर्णन, शुक तथा काक पर अन्योक्ति करके, करता है-

(अर्थ)-[देखो,] समय के फेर से (अवसर विशेष उपस्थित होने के कारण) [सब लोग पिंडदान के कार्य में ऐसे प्रवृत्त हैं कि] सुआ (शुक)[बेचारा तो] पिँजड़े मेँ पड़ा प्यास से मर रहा है, [किसी को उसके दाना-पानी का भी ध्यान नहीं है, और इस] बलिप्रदान के बेर (अवसर पर) 'बाइस' (वायस, काक) आदर दे देकर (बड़े आदर-पूर्वक) 'बोधियतु' (बोला जाता, पुकारा जाता) है॥

बेई कर, न्योरनि बहै, न्योरी कौन विचार । जिनहीं उभियौ मो दियो, तिनहीं सरझेबार ॥ ४३३॥ कर-हाथ । यहाँ इस शब्द का अर्थ घोटी, अर्थात् को काम करने का डंग विशेष, है ॥ ब्यौरनिबातों के सँवारने का विशेष रंग ॥ ब्यौरी-मेव ॥ (अवतरण )-मानिका ने अपनी सची को नायक के पास कुछ संदेश कर मेचा भा। मायक ने वहाँ रसके केश अपने हाथ में संवार दिए। उसके बौरने पर माविका कंश संपारने की बौटी तथा रीति से नायक-वारा सँगारे गए केरा पाचान कर पाती है (अर्थ )-[तेरे बालों के मनाव को हथौटी हीरे, [जो नायक की तथा ] 'म्यौरमि' (संवारने की रीति) [भ] वही है,जैसी नायक की । सोफिर भव] म्यौरा (भेद, अंतर ) किस विचार से [रा गया । यह तो निभव ही हो गया है कि जिनसे मेरा एब उकझा है, उन्हीं से ( उनीं के द्वारा)[तेरे पास मुखमेरे। .. भित्र भित्र टीकाकारों ने इस दोहे मिष मित्र किराहनारी भनक मैं पर चितामा अपं विशेष पर, अंगत बबाहदानुपापा। १. बोलियै ( २ ) । २. बायस (४) । ३. हरझत ( २ ) । ४. सुरझत (१)।