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पृष्ठ:बिहारी-रत्नाकर.djvu/२३७

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बिहारी-रत्नाकर


१९४ बिहारी-रत्नाकर ( अवतरण )-नायिका का सखी उसे विरह-विकल देख कर, जी बहलाने के निमित्त, वन में ले जाया चाहती है । उसको यह आशा भी है कि कदाचित् वहाँ श्रीकृष्ण चंद्र से भेंट हो जाय, परंतु इस बात का उसको दृढ़ विश्वास नहीं है । अतः उनके वहाँ होने का यह अनुमान वह इस उद्देश्य से प्रकट करती है कि उनके दर्शन के लाभ से वह वन मैं जाने को उद्यत हो जाय, और अपने अनुमान के प्रमाण मैं विना पावस ही के उस वन मैं मेरौं के नाच उठने का, सच्चा अथवा कल्पित, वर्णन करती है, जिसमैं कि यदि श्रीकृष्णचंद्र से वहाँ भेंट न हो, तो नायिका उससे खीझे नहीं, प्रत्युत विना कारण नाच उठने के अपराधी मार समझे जायें | ( अर्थ )-[ हे सखी, आज मैं जव यहाँ आ रही थी, तो इस पास वाले ] वन में विना पावस के अचानक ही मोर नाच उठे [ इससे में ] जानती हूँ ( अनुमान करती हूँ ) [ कि घनश्याम-स्वरूप ] नंदकिशोर ने यह दिशा आनंदित की है ( अर्थात् इस दिशा को अपने पदार्पण से सुखी किया है ) ॥ मैं यह तोहीं मैं लवी भगति अपूरब, बाल । लहि प्रसाद-माला जु भी तनु कदंब की माल ॥ ४७० ॥ ( अवतरण )–नायिका किसी देव मंदिर में दर्शनार्थ गई है। वहाँ उसी समय उसका उपपति नायक भी आया है। नायक और नायिका, दोन ने देवार्चन कर के पुष्प की सुंदर सुंदर मालाएँ चढ़ाईं, और पुजारी ने मंदिरों की परिपाटी के अनुसार प्रसाद की मालाएँ उनको पहनाईं । संयोग से उसने मायिका को नायक की चढ़ाई हुई माला पहना दी । नायिका ने वह माला नायक को चढ़ाते देखी थी। अतः उसके स्पर्श से उसके सर्वांग मैं रोमांच सात्त्विक हो गया, जिससे सखी उसकी प्रीति लक्षित कर के कहती है-- | ( अर्थ )-हे बाल ( वाला ), यह अपूर्व ( विलक्षण ) भक्ति मैंने तुझी में देखी कि प्रसाद की माला पा कर [ तेरा ] तन कदंव की माला ( कदंव के पुष्पों की माला के रूप का, अर्थात् रोमांचित ) हो गया ॥ दोहे मैं स्वयं पुजारी से भी नायिका का अनुराग माना जा सकता है। ऐसी दशा मैं उसके रोमांचित होने का कारण पुजारी की दी हुई माला का स्पर्श माना जायगा । जाकै एकाएक हूँ जंग ब्यौसाई न कोइ ।। सो निदाघ फूलै फरै” कु डहडहौ होइ ।। ४७१ ॥ एकाएक हुँ=एकाकी भी, अकेला भी ।। ब्यौसाइ ( व्यवसायिन् ) = व्यवसाय अर्थात् उद्योग करने वाला ॥ | ( अवतरण )---निःसहाथ मनुष्य के हानिकारक दशा मैं भी ईश्वर की सहायता से संपन्न होने पर कोई, मदार-वृक्ष पर अन्योक़ि कर के, कहता है ( अर्थ )-जिसके निमित्त जग में कोई एकाकी [ मनुष्य ] भी व्यवसायी (उद्योग | १. एको ( १, ४), एकै ( २ ) । २. हीं ( २ ) । ३. फल ( ३, ५ ) । ४. फलै ( ३, ५ )।