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पृष्ठ:बिहारी-रत्नाकर.djvu/२६२

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बिहारी-रत्नाकर

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विहारी-राफर २१४ ( अर्थ )-[अरी ] घनसार ( कपूर ) में ‘मलै’ (मलय, चंदन ) मिला कर [ एवं ] गुलाब-जल से ( में ) घोल कर लगाती हुई [ सखी, तू इस लेप लगाने की ] 'अरें' ( हठ में ) मत पड़ ( हठ मत ठान ); [ क्योंकि मेरा] हृदय [ विरह से ] भली भाँति जले हुए होने पर [ भी इस लेप से शरीर में और भी ] जलन [ उत्पन्न ] करता है ॥ दोऊ चोरमिहीचनी खेलु न खेलि अघात । दुरत हियँ लपटाइ कै छुवत हियँ लपटात ।। ५३० ॥ चौरमिहीचनी-यह एक प्रकार का खेल है, जिसको आँखमिचौल या आँखमिचौनी भी कहते । हैं। इसमें पाँच सात लड़के लड़कियाँ सम्मिलित होते हैं। उनमें से एक की आँखें बंद की जाती हैं, और शेष सब भाग कर जहाँ तहाँ छिप जाते हैं। तब उसकी अाँखें खोल दी जाती हैं, और वह सबको खोजने के लिए इधर उधर दौड़ता है । इतने मैं सब अपने अपने छिपने के स्थानों से निकल निकल कर उस स्थान को, जहाँ ग्रॉखें मूंदी गई थीं और जिसको खुटवा कहते हैं, दौड़ दौड़ कर छूने का यत्न करते हैं। जिस व्यक्ति के। वह, जिसकी आँखें मूंदी गई थी, बँटवा छूने के पहिले, छू लेता है, वह चोर हो जाता है । फिर दूसरी बार उसी की आँखें मीची जाती हैं । इस खेल में कभी चोर किसी के छिपने के स्थान ही पर पहुँच जाता है, तो उसे देख कर छिपने वाला वहाँ से भागता है, जिसमें वह चोर उसको छ न सके । ( अवतरण )–नायक नायिका, दोनों सखियाँ के साथ अाँखामचौअल खेलते हैं, पर उस खेल से तृप्त नहीं होते; क्याँकि उनको उस मैं परस्पर आलिंगन करने का अवसर मिलता है। सखी-वचन सखी से--- | ( अर्थ )-दोनों ( नायक नायिका ) चोमिहीचनी का खेल खेल कर अघाते नहीं ( तृप्त नहीं होते )। [ दोनों एक दूसरे के ] हृदय से लिपट कर छिपते हैं, [ अर्थात् जब किसी अन्य की आँख मीचने की पारी होती है, तब दोनों एक ही स्थान में जा छिपते है, और वहाँ एकांत पा कर परस्पर आलिंगन करते हैं, और ] छूते समय [ भी परस्पर ] हृदय से लिपटते हैं [ अर्थात् जय इनमें से किसी की आँखें मीचने की पारी पड़ती है, तो दूसरा जिस गुप्त स्थान में छिपता है, वहाँ वह उसको खोजता हुआ पहुँच जाता है। उसको देख कर छिपने वाला भागता नहीं, प्रत्युत छ जाता है, और उस एकांत स्थल में दोनों परस्पर आलिंगन करते हैं ] ॥ मिर्सि हाँ मिसि आतप दुसह दुईं और बहराइ । चले ललन मनभावतिहिँ तन की छाँह छिपाइ ।। ५३१ ॥ ( अवतरण )-ज्येष्ठा कनिष्ठ। नायिका के साथ नायक के बताँव का वर्णन गई सखी किसी अन्य सस्त्री से करती है ( अर्थ )-दुसह (कठिनता से सटे जाने के योग्य ) आसप ( धूप) के बहाने ही १. मित ही मिस ( २,४)। २. लाल (३)। ३. तिनको (४)।