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विहारी-रत्नाकर ( मुरव्वत ) से [ उसका ] हठ छूट जायगा [ कि अब रोष की वह तेज़ नहीं है; जो तब ] खरे चढ़ाए हुए थे, वे लोचन असे लोव ( लचकरने, नर्मी ) पर आ गए हैं।
कहे जु पयन बियोगिनी विरह-विकल बिललाइ ।
किए न को अँसुवा-सहित सुवा ति बोल सुनाइ ॥ ५३७ ।। ( अवतरण १ )-प्रोषितपतिका नायिका ने विरह-दुःख से प्राण त्यागते समय विबला कर जो वचन कहे थे, उमको शुक ने याद कर लिया था, और फिर उसने उन करुणामय शब्द का उच्चारण कर कर के सुनने वा को रुला रुला दिया । यही वृत्तांत उस मृत विरहिणी की कोई सखा किसी से
हती है
( अर्थ १ )-[ उस ] विरह से विकल वियोगिनी ने [ प्राण त्यागते समय ] जो [ करुणामय ] वचन लिला कर ( विवशता तथा हताशता से भरा हुआ विलाप कर के ) कहे [५], उन शब्दों को सुना कर सुग्गे ने किनके आँसुओं के सहित नहीं कर दिया (किनको नहीं रुला दिया, अर्थात् सब सुनने वालों को रुला दिया ) ॥
| इस दोहे का अर्थ अन्य टीकाकारों ने जीवित प्रोचितपतिका नायिका पर लगाया है, क्याँकि श्रृंगार रस मैं मरणावस्था का वर्णन निविद माना जाता है। पर दोहे के शब्द से नायिका का विलक्षा कर प्राण त्याग देना प्रतीत होता है। ‘क’ भूतकालीन क्रिया है। अतः उससे प्रतीत होता है कि अब वैसे वचन वह नही करती । इसके दो कारण हो सकते हैं-एक तो उसके पति का आ जाना और दूसरा उसका शरीर त्याग देना । पति के आ जाने पर भी सखा उससे शुक वाला वृत्तांत, नायिका का प्रेमाधिस्य व्यंजित रने के निमित्त, कर सकती है। पर दोहे के शब्द से ऊपर लिखा हुआ अर्थ ही कुछ विशेष झलकता है॥
बायो ने भंगार रस में दशम दशा का वर्णन निस्संदेह निविद माना है। पर जहाँ ऐसी घटना हो जाती है, वहाँ उसका वर्णन करना ही पडता है। इसके अतिरिक्त बिहारी की सतलैया में यपि श्रृंगार की प्रधानता है, तथापि इसमें अन्य रस के दोहाँ का अभाव भी नहीं है। अतः इस दोहे को करुण अंगार का दोहा मानने में कोई बाधा नही ज्ञात शेती ॥
यदि इस दोहे । अर्थ जीवित नायिका हो पर लगाना हो, तो इस प्रकार लगाना चाहिए
( अवतरण २ )-नायक के परदेश से पाने पर सखी नायिका के वियोग-दुःख का वर्णन, उसके उदय में प्रति बढ़ाने के अभिप्राय से, करती है
| ( अर्थ २ )-[इस] विरह से विकल वियोगिनी ने (जिस समय यह विरह से विकल वियोगिनी थी, उस समय इसने ) जो वचन बिलला कर ( विवशता तथा अतुरता से भरा हुआ विलाप कर के ) कहे, [ वे ऐसे करुणाजनक थे कि उनसे इसका तो लोगों को रुला वेना कोई बात ही न था ]उन बोलें ( शन्दों ) को सुग्गे ने सुना कर किनको ( ऐसे कौन कठिन हदय के थे, जिनको) असू-साहित नहीं कर दिया ( किनके नहीं रुला दिया, अर्थात् सब सुनने वालों को रुला दिया ) ॥
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बिहारी-रत्नाकर