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बिहारी-रत्नाकर

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बिहारी-राफर ( जिस ओर से ) [ चलने के कारण ] नाँक चढ़ा कर सीबी ( तुःख-सूचक सीत्कार ) करती है, प्रियतम फिर फिर ( वारंवार ) भूल कर (भूला हुआ सा हो कर ) वही कॅकड़ीली गैल (दुरहुरी ) गहता है॥ नेटि न, सीस साबित भई लुटी सुखनु की मोट । चुप केरि ए चारी कति सारी-पैरी सलोट ॥ ६०७॥ ( अवतरण )-अन्यसंभोग-दुःखिता नायिका दूती की साड़ी मैं सिलवटें पड़ी हुई देख कर कहती है ( अर्थ )-[वस, अब तू ] नट नहीं” ( मुकर मत ), [ तेरे ] सिर [ मेरे ] सुखों की लुटी हुई ‘मोट' (मोटरी, गठरी) साबित ( प्रमाणित ) हो गई (अर्थात् मेरे सुख की गठरी जो लुट गई है, वह तृने ही लूटी है, यह बात प्रमाणित हो गई )। ये ( तेरी ] साड़ी में पड़ी हुई सिलवटें 'चुप करि' ( चुपके चुपके, विना बोले ही ) चारी ( चुगली ) करती हैं [अतः अव तेरे मुकरने से कोई लाभ नहीं हो सकता ] ॥ । ‘चुप करि' का अर्थं तु चुप रह भी हो सकता है । जिहिँ भामिनि भूषनु रच्यो चरन-महावर भाल । उहीं मनी अँखियाँ रँग ओठनु नैं रंग, लाल ।। ६०८ ॥ | ( अवतरण १ )-नायक प्रातःकाल सापराध अाया है । नायिका ने जब उससे कहा कि आज आप रात भर किसके साथ जागे हैं, जो आँखें लाल हो रही हैं, तो नायक ने उत्तर दिया कि नहीं, हम जागे तो नहीं हैं। उस पर नायिका, उसके भाल पर के महावर पर उसका ध्यान दिलाती हुई, व्यंग्य से कहती है कि यदि आपकी आँखें जागने से लाल नहीं हुई हैं, तो यह अनुमान होता है कि जिस भामिनी ने अपने चरण के महावर से तुम्हारे भाल को साख कर दिया है, उसी ने अपने ओठ के रंग से तुम्हारी आँखें रँग दी हैं ( अर्थ १ )-जिस भामिनी ( क्रोधवती स्त्री ) ने [ अपने ]चरण के महावर से 1 तुम्हारे ] भाल पर भूषण रचा है ( बनाया है ), हे लाल, मानो उसी ने [अपने] ओठों के रंग से [ तुम्हारी] आँखें रँग दी हैं [यदि तुम्हारी आँखें जागने के कारण लाल नहीं हैं, जैसा कि तुम कहते हो ] ॥ इस दोहे का अर्थं प्रायः टीकाकारों ने ऊपर खिले हुए अर्थ से मिलता जुलता हुआ। सा किया है । पर इस अर्थ में उत्प्रेक्षा केवल इतनी ही बात पर होती है कि यदि आँखें जागने से बाज नहीं हैं तो मानो ओठ के रंग से रंगी गई हैं। यह उस्प्रेक्षा कुछ विशेष चमत्कृत नहीं ज्ञात होती, और दोहे के अवतरण में जो बातें माननी पड़ती हैं, वे भी कुछ विशेष चुभती हुई सी नहीं हैं, अतः अगी हुई खाली पर पान की पीक की साली की उपेक्षा करना खंभिसा के वाक्य में कुछ १. नट न ( ३, ५ ) । २. रहि ( ३, ५) । ३. करत ( ३, ५ ) । ४. पेरें ( ३, ४ ) । ५. तिहीं ( ३, ५ ) ।