(अर्थ)—[वह] शशिमुखी सटपटाती हुई सी ही (भय, अभिलाषा तथा संकोच से यह संशय करती हुई सी ही कि झाँकूँ या न झाँकूँ, अर्थात् यद्यपि उसके हृदय में झाँकने के विषय में हिचक थी, तथापि) [अपने] मुख पर घूँघट का पट ढाँप कर, [और] पावक की झर (लपट) सी झमक कर (शीघ्रता पूर्वक लपलपा कर) झरोखे मेँ से झाँक गई॥
'सटपटात सैँ' पद को सप्तम्यंत 'मुख' शब्द का विशेषण मान कर भी इस दोहे का अर्थ लग सकता है। उस दशा मैँ दोहे के पूर्वार्द्ध का अर्थ यह होगा—वह राशिमुखी सटपटाते से मुख पर घूँघट-पट ढाँप कर॥
इस दोहे का उत्तरार्द्ध ज्योँ का त्योँ ५७०-संख्यक दोहे का भी उत्तरार्द्ध है॥
गति—इस शब्द का अर्थ २९१-संख्यक दोहे की टीका मेँ किया गया है। गति लेना वाक्य-व्यवहार मेंँ गति नाचने को कहते हैं॥
(अवतरण)—नायक नायिका को चरखा कातते देख कर उसकी मोहिनी चेष्टा का वर्णन स्वगत करता है—
(अर्थ)—[अहा!] जिस प्रकार (जिस लय से, जिस मंदता अथवा शीघ्रता से) [इसका दाहिना] हाथ [चरखे के घुमाने मेँ चलता है], उसी प्रकार [इसके बाँए हाथ की] चुटकी [रुई की पिउनी को सरकाती] चलती है, [और] जिस ढंग से चुटकी [चलती है], उसी प्रकार [उसकी] नारि (ग्रीवा) [भी चलती अर्थात् हिलती है]। [यह] चतुर कातने वाली [चरखा क्या कातती है, अपनी इस] छवि (सुंदर चेष्टा) से [नाचने की] गति सी ले चलती है॥
अनुमान =तर्क कर के किसी वस्तु का निर्द्धाण करना॥ प्रमान (प्रमाण) वेद, शास्त्र इत्यादि अथवा किसी मनुष्य के वचन को किसी विषय मेँ मान लेना॥ श्रुति इस शब्द मेँ श्लेष है; ब्रह्म-पक्ष के इसका अर्थ वेद है, और कटि-पक्ष मेँ कान अथवा सुनना॥ पर—इस शब्द को अन्य टीकाकारोँ ने ब्रह्म के साथ मिला कर 'परब्रह्म' पाठ माना है, इसी से उनके अर्थों में गड़बड़ पड़ती है। वस्तुतः यह शब्द स्वतंत्र है। इसका अर्थ यहाँ जोड़, प्रतिद्वंद्वी अथवा पर्याय है। 'सूछम कटि पर ब्रह्म की' का अर्थ ब्रह्म की प्रतिद्वंद्विनी, अर्थात् ब्रह्म के समान, सूक्ष्म कटि होता है॥
(अवतरण)—नायक अथवा सखी नायिका से, उसकी प्रसन्नता के लिए, उसकी कटि की सूक्ष्मता की प्रशंसा करती है:—
(अर्थ)—[तेरी] सूक्ष्म कटि ब्रह्म की पर (प्रतिद्वंद्विनी) अलक्ष है, [वह चर्म-दृष्टि