पृष्ठ:बिहारी-रत्नाकर.djvu/३०९

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२६६
बिहारी-रत्नाकर


२६६ विहारी-रत्नाकर ( अर्थ )-[वह] शशिमुखी सटपटाती हुई सी ही ( भय, अभिलाषा तथा संकोच से यह संशय करती हुई सी ही कि झाँकें या न झाँकैं, अर्थात् यद्यपि उसके हृदय में झाँकने के विषय में हिचक थी, तथापि )[ अपने] मुख पर पूँघट का पट ढाँप कर, [ और ]पावक की झर ( लपट ) सी झमक कर ( शीघ्रतापूर्वक लपलपा कर) झरोखे में से झाँक गई ॥ ‘सटपटात ' पद को सप्तम्यंत ‘मुग्न्न' शब्द का विशेषण मान कर भी इस दोहे का अर्थ बग सकता है। उस दशा मैं दोहे के पूर्वार्द्ध का अर्थ यह होगा वह शशिमुखी सटपटाते से मुख पर चूँघट-पट ठाँप कर ॥ | इस दोहे का उत्तरार्द्ध ज्य का त्यौं १७०-संख्यक दोहे का भी उत्तरार्द्ध है ॥ ज्य कर, त्यौं चिकुटी चलति; ज्यौं चिकुटी, त्यौं नारि। छवि स गति सी लै चलति चातुर कातन-हारि ॥६४७।। गति-इस शब्द का अर्थ २६१-संख्यक दोह की टीका में किया गया है। गति लेना वाक्य-व्यवहार में गति नाचन को कहते हैं । | ( अवतरण )-नायक नायिका को चरवा कातत देख कर उसकी मेदिनी चेष्टा का वर्णन स्वगत करता है-- ( अर्थ )-[ अहा !] जिस प्रकार (जिस लय से, जिस मंदता अथवा शीघ्रता से ) [ इसका दाहिना ] हाथ [ चरखे के घुमाने में चलता है ], उसी प्रकार [ इसके बाए हाथ की ] चुटकी [ रुई की पिउनी को सरकाती ] चलती है, [ और ] जिस ढंग से चुटकी [ चलती है ], उसी प्रकार [ उसकी ] नारि ( ग्रीवा ) [ भी चलती अर्थात् हिलती है ] । [ यह ] चतुर कातने वाली [ चरखा क्या कातती है, अपनी इस ] छवि ( सुंदर चेष्टा ) से [ नाचने की ] गति सी ले चलती है । बुधि अनुमान, प्रमान श्रुति किएँ नीठि ठहराइ । सूर्छम केटि पर ब्रह्म की अलख, लखी नहिं जाइ ॥ ६४८ ॥ अनुमान=तर्क कर के किसी वस्तु का निर्धारण करना । प्रमान ( प्रमाण ) = वेद, शास्त्र इत्यादि अथवा किसी मनुष्य के वचन को किसी विषय में मान लेना ।। श्रुति-इस शब्द में श्लेष है ; ब्रह्म-पक्ष में इसका अर्थ वेद है, और कटि-पक्ष में कान अथवा मुनना ।। पर इस शब्द को अन्य टीकाकारों ने ब्रह्म के साथ मिला कर परब्रह्म' पाठ माना है, इसी से उनके प्रथा में गड़बड़ पड़ती है । वस्तुतः यह शब्द स्वतंत्र है। इसका अर्थ यहाँ जोड़, प्रतिद्वंद्वी अथवा पर्याय है । ‘ सुम कटि पर ब्रह्म की' का अर्थ ब्रह्म की प्रतिद्वंद्विनी, अर्थात् ब्रह्म के समान, सूक्ष्म कटि होता है । । ( अवतरण )–नायक अथवा सखी नायिका से, उसकी प्रसन्नता के लिए, उसकी कटि की सुक्ष्मता की प्रशंसा करती है ( अर्थ )-[तेरी ] सूक्ष्म कटि ब्रह्म की पर ( प्रतिद्वंद्विनी ) अलक्ष है, [वह चर्म-दृष्टि १. चुटकी ( २ )। २. उनमान (२, ३, ५) । ३. कियो (२) । ४. सुछिम ( ३, ५ ) । ५. गति ( २ ) ।