पृष्ठ:बिहारी-रत्नाकर.djvu/३४१

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विज्ञप्ति इस उपस्करण में विहारी-रत्नाकर स्वीकृत दोहा की अकारादि क्रम से सूची दी जाती है, जिसमें पाठकों को काई दोहा विशेष खोज निकालने में सुर्व ता हो । इसमें अन्य छपी हुई टीकाओं के क्रमों के अनुसार भी दोहों के अंक कोष्ठा में दे दिए गए हैं, जिसमें उक्त टीकाओं में भी दोहे सरलता से निकाले जा सके। । यद्यपि भूमिका में विहारी-ग्नाकर को मिलाकर सत्र ५२ टीका का कथन किया गया है, पर उनम से केवल ये ४ टीकाएँ छपी हैं - ( १ ) कृष्ण कवि की टीका, (२) हरिप्रकाश-का,( ३ ) लाल-चंद्रिका (४) ऋगारसप्तशती, (५) रस-केमुदी, (६) पं० प्रभुदयालुजी की टीका, (७) विहारी-विहार, (८) पं० ज्वालाप्रसाद मिश्रजी की 2ीका, ( 8 ) गुलदस्तए-विहारी, (१०) सजीवनभाष्य, (११ ) विहार-वोधिनी, (१२) गुजराती टीका, (१३) पं० रामवृक्ष की टीका और ( १४ ) बिहारी-रत्नाकर ॥ अतः इस सूची में इन्ह १४ टीकाओं के अंक देना उचित प्रतीत हुआ । शेष टीकाएँ दुष्प्राप्य हैं; उनके अंक सामान्यतः पाठकों के निमित्त व्यर्थ होते । मानसिंह की टीका के अंक केवल 'बिहारी-रत्नाकर' के क्रम में स्वरूप परिवर्तन दिखाने के निमित्त दिए गए है ।। प्रथम कोष्ठ में दोहों के आदि के शब्द अकारादि क्रम से दिए गए हैं, और द्वितीय कोष्ठ में मानसिंह की टीका के अंक । शेष सात कच्चों में मुद्रित टीकाओं के अनुसार दोहों के अंक है ।। कृष्ण कवि की टीका में, जे नवलकिशोर-प्रेस से निकली है, बीच बीच के कई दोहे छोड़ दिए गए हैं। हमने जो अंक इस सूची में दिए हैं, वे उक्न टीका की कई प्रतियों के मिलान से शुद्ध करके, अतः छपी हुई पुस्तक के अंक से हमारे अंकों में कहाँ कहाँ १-२ तथा कहीं कहीं ८-१० अंकों का अंतर पड़ गया है । पाठक छपी हुई पुस्तक में दोहा खोजते समय ५-७ दोहे आगे पीछे देख लें । कवि सवितानारायण जी की गुजराती टीका के दो का क्रम कृष्ण कवि की टीका के क्रम के अनुसार ही है। | गुलदस्तए-बिहारी, बिहारी-बोधिनी तथा श्रीरामवृक्षजी की टीका, इन तीनों ग्रंथों में हरिप्रकाश-टीका का क्रम है ॥ बिहारी-बिहार, स्वर्गीय पं० ज्वालाप्रसाद मिश्र को टीका तथा संजीवन-भाष्य में लाल-चंद्रिका का क्रम स्वीकृत किया गया है ।। ऋगार-सप्तशती में सामान्यतः लाल-चंद्रिका का क्रम है, किंतु उसमें कुछ ऐसा हेरफेर पाया जाता है कि उसके अंकों के निमित्त एक पृथक् कोष्ठ रखना उचित समझ पड़ा। इसी कारण पं० प्रभुदयालुजी की टीका को को भी अलग रखा गया है, यद्यपि उसमें सामान्यतः कृष्ण कवि की टीका के क्रम है। का अनुकरण है॥