पृष्ठ:बिहारी-रत्नाकर.djvu/३५०

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। ज जदपि नाहि जदपि तेज जबपि चवाइनु जटित नीलमनि जगतु जनायो जंघ जुगल झै छिगुनी छुटै न लाज छुटे छुटावत छुटन न पैयतु छुटत मुठिनु छुटी न सिसुता की छिरके नाह छिप्यौ छवील छिप छिपाकर छिनकु, छत्रीले निकु चलति छिन उघारति छाले परिबे के छला परोसिनि छला छबीले छती नेहु उझकि [ज ] दोहाँ की अकारादि सूची

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१५३ १५३ | ५३८ ५.३८ | १६६ ५८८० ३४५ ५०४ : ५.०४ | १९८ ३८६ : ३८४ | ३३७ |

  • * * * * * * मानसिंह की टीका * * * * * * * | बिहारो-रत्नाकर

३.? | ३७६ । १२३ । १६३ | २२ ! १७६ ३९६ : ४७५ उपस्करण-१ कृष्ण कवि की । | टीका

  • * 2 2 ॐ ॐ ॐ

ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ७ | ५०६ | ५२० ॐ ॐ हरिप्रकाश-टोका | लाल-चंद्रिका * * | ऋगार-सप्तशती • * * * *

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० ० ० ६ ० ० ० ० ० ० ६ ० * ० ४ ० ० ० ० * ० * ॐ | रस-कौमुदी ।