पृष्ठ:बिहारी-रत्नाकर.djvu/३६०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

उपस्करग-१ दोहों की अकारादि सूची मानसिंहकीटका विहारी-रत्नाकर कृष्ण कवि की टीका | की टीका । रस-कौमुदी ५६७ ९६७ | हरिप्रकाश-टीका प्रभुदयालु पाँडे | ऋगार-सप्तशती * * | लाल-चंद्रिका

  • * * * * * * * * * * * * * * * *
  • * * * * *

६७० ' ६७० | ५१ ५६ | ४६३ : ४७५

  • * * * * * * * * *

२३० २१९ ० ० ० ० * ० * * * ० ४५८ ४५८

६८३ ! ५६८

| [फ ] फिरत जु अटकत फिरि घर की फिरि फिरि चितु। फिरि फिरि दौरत फिरि फिरि बिलखी फिरि फिरि बुझति फिरि सुधि दै फुलीकाली फूले फदकन फेरु कळू [य] वंधु भए वड़े कहावत वड़े न हुने बढ़त निकसि बढ़त बढ़त बतरस-लालच वन-तन को वन-बाटनु बर जीते सर वरजं दूनी हठ बरन, बास बसि सोच वर्स बुराई ६२ | ६१ । ५७४ २२९ २६६२२८ १६६ | ६१ । ६६८ | ६६८ २३१ ३३१ | ३३१ : ६६८ ६४३ ४७१ : ४७२ : ५११३५६ | २५४ | २४५ १४७ | १४७ ! १५० | २३२ ६७२ | ४७५ | ४७५ : ५२६ ५२७ ३९२ | ३८४ ६७ ७ ३०५ ५५ : ४६० | ४७१ ६८६ ६८३1४३ ३६६ ५५० | ५४१ ६६४ | ६६४ ६१ : ४७६ ! ४६

  • ० ० ० ० ० ० * ० ६ १ ० ६

३८० | ३८१६६१ । ६३३ । ६०७ : ५६६ | १४५