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पृष्ठ:बिहारी-रत्नाकर.djvu/३६६

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लगत सुभग लाख लोने लखि लखि | लखि दौरत सखि गुरुजन लई सह सी उप-सुधा । रुख रूखी रुझ्या सॉकर गधा हरि राति द्यौस रह्यौ मोड़ रह्यौ ढीठ रह्ये चकितु रह्यो ऐचि रहे। गुही र निगोड़े रहे बरोठे। रही लटू है रही पेज रही रुकी क्या हैं। रही पकरि रही दहेड़ी रही अचल दोहा की अकारादि सूची ३४१ ३४३

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३६१ । ३८६ ५६

  • * * * * * * * * * * * * * * * मानसिंह की टीका * * * * * * * * * * * * * * * * * * | बिहारी-रत्नाकर

कृष्ण कवि की। उपस्करण-१ ५६१ | ५४४ १७६ | ३३३ ३४२ ६११ २११३७८ ३६६ । ५५२ ५८४ | ५८४ ५६१ ५= ६ ६ ६ ६ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ४ ३ ३ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ | हरिप्रकाश-टीका ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ * * | लाल-चंद्रिका ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ | शृंगार सप्तशती ५ हैं ० ३ ० ३ ० ० ० * ० * ० * ० * ० * ० ० * ० * * • | रस-कौमुदी