पृष्ठ:बिहारी-रत्नाकर.djvu/३७१

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| है कपूर-मनि ह्याँ न चले खाँ हैं हाँ है। रीझी हां है वौरी होमति सुख है हिय रहति हेरि हिंडोर हुकुमु पाइ ही औरै सी हितु करि हा हा ! बदनु हरि हरि हरि-छवि-जल हरि कीजति हरपि न | हम हारीं । हठ न हठीली हठि, हितु करि हँसि, माइ हँसि ओठनु हंसि उतारि [ दोहों की अकारादि सूची ] ६२ | ३६२

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मानसिंह की टीका | विहारी-रत्नाकर १८७ । ४०४ । विहारी-रत्नाकर ७७ | १४८ | ५२३] ४४०

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| हरिप्रकाश-टीका ! लाल-चंद्रिका २ ३५ २७४। ७०७ लाल-चंद्रिका | श्रृंगार-सप्तशती की टीका ० ० ० ० * * * ० ० ० * ० * * ० ० ० ० ० ० ० * ० | रस-कौमुदी