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पृष्ठ:बिहारी-रत्नाकर.djvu/३७५

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बिहारी-रत्नाकर ऐसें अंतर-नेह की अंग अंग दुति इति । जैसे पट फानूस के दुरै न दीपक-जोति ॥ १५ ॥ में समुझाई ही सखी, प्रेम न होई खलु । अपनी आराँ सीस हूँ प्रेम-पाँव मेलु ॥ १६ ॥ तव में तास हो को, माने नाहिंन बैन । से बसायी लै हिये, हियहाँ लाग्य लैन ॥ १७ ॥ या न करु, भैरै कह दियो प्रेम पिय नासि । फेरि घरी ली के धरै सुनि में हैं अखि ॥ १८ ॥ लोदन लोहू किन बहौ, जो जिये सॉच हेत। ऑमुनि कै मिसि नैन-मग प्रेम पानी देत ॥ १६ ॥ श्रीएं जोवन कै, सुन्यो, जो गति कीनी मैन । तिया-अंग के भेद सब कसबाती कहे नैन ॥ २० ॥ जियत न जिय की जानिये, इठ ही सी ज्यो लाँ। कौन रीति यह तियनि की, जियाइँ गएँ ज्यौ दे॥ २६ ॥ करु गहि नाइक हँसि को कछु बचन रति-काज । पलकनि कौ चूंघटु कियौ प्रिया प्रेम की लाज ॥ २२ ॥ भला बुरी जैसी परो, बानि न ताकी जाइ । अम्रित पियै चकोर वहि, वहे अँगार चबाइ ॥ २३ ॥ लाज घरि अँचई सबै, अरु कुरु दीनौ नाखि । ताही सी बातनि लगौ, जास लागी ऑखि ॥ २४ ॥ विधि हूँ यारक पूछियो-मिले तु सिर तिनु नाखि । हैं हैं देखीं हैं कहूँ, ऑखिनि ऐसी ऑखि ॥ २५ ॥ और कछु सुभै नहीं, दई दुहाई मैन । वाही के सँग है गए नैननि लागे नैन ॥ २६ ॥ कटि छोटी, छाती बड़ी, अँख्यौ लागतं कान । छीवरबार छोहरी लेति छुड़ाएँ प्रान ॥ २७ ॥ ताही तिनु है बुझियै, कई पतीजै साँच। गहिँ लागिह अगि सी, मेटै तन की आँच ॥ २८ ॥ चंदन, चंपक, चंद-रस, चंद चुस्यो तन जाइ । बारक अली, अंग सौं अँग्यौ देखि लगाइ ॥ २६ ॥ १. शेरें । २. समरु सजायो । ३. कहि न कहै मेरी कयौ । ४• आँखिनि । ५. पिय । ६. आयो जोवन आ मिल्यो जो गति । ७. कहाँ । ६. ६ पिघलाई ।