पृष्ठ:बिहारी-रत्नाकर.djvu/३७८

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३६ उपस्करण-२ कहा हुतौ मोसी कह्यौ, कत डारत बहराइ । गोपें गुऐ न सुरत-सुख, कोए कहत गुरार ॥ ६० ॥ पलकनि दाबत नैन पिय, उघरि उघरि ते जाहिँ । राते माते रूप-रस, कोए सोए नाहिँ ॥ ६१ ॥ चलौ चलें हीं मानिहै, मतै मतौ नहिँ न । रह्यौ, रावरी सौंह, है भाइक भौहनि मान ॥ ६२ ॥ तुम रूठी, उत वे झुके, थके हमारे पाई । पाथर लागै लोह सौं, रुई बीचि जरि जाइ ॥ ३ ॥ पिय की पुतरी देखि कै कर-वीरी दइ नाखि । मोहिं दिखावति देखि यो आँखिन में की ऑखि ॥ ६४ ॥ मनु मिलवति हम सौनहीं, मानु दिखावति नारि । नेह-चीनी देखियै रूखी रूठन-हारि ॥ ६५ ॥ ललाक लोल लोचन भए सुनत नाह के बोल । ऊपर की रिस क्यों दुरै हाँसी भरे कपोल ॥ ६६ ॥ कामिनि के वर रूठनौ, तमक चढ़ावन भौह । कामी कौ लाहस यहै-के हा-हा, के सह ॥ ६ ॥ बालम, तुम सी रूठियै, मन सौ कछु न बसाइ । यज्यौं खेंच आप यौं, त्यों तुम-तन जाइ ॥ ६ ॥ ऑखिनि सौं आँखें लगीं, मनु लाग्यो ता साथ । जैसे पंथी पंथ मैं ठगु येचे ठग-हाथ ॥ ६६. ॥ पाएँ अन पाएँ भली, दाताई नरु अंत । पातु न देइ करील कौं, फूलै तऊ बसंत ॥ ७० ॥ मानु दुरावति सखिनि हूँ, हँस हँसि वोलति वैन । प्रेम-परेखी हिय कछु, भरि भरि आवत नैन ॥ ७१ ॥ और हँसनि, औरै लसनि, और कसनि कटि-ठौर।। नैन चुगल काननि लगे, मनु करि डायी और ॥ ७२ ॥ बामन लॉ पिय छलु कियौ, में बाल ली कह्यौ दैन । प्रेम पैड़ है माँग के लागे सरबसु लैन ॥ ७३ ॥ मान छुटैगौ मानिनी, पिय-मुख देखि उदेति । जैसें लॉगै बाम के पाला पानी होत ॥ ७४ ॥ १. कहत मास कहत। २. मती मतेहीं । ३. है मट् । ४. चिकन” । ५. रूखहूँ अनुहार । ६. दाप्ति ।