पृष्ठ:बिहारी-रत्नाकर.djvu/४५

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बिहारी-रत्नाकर

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बिहारी-रत्नाकर परै'=पड़ने से । इस शब्द के भी निम्नलिखित तीन भावार्थ 'भाई' के तीन अर्थों से यथाक्रम अन्वित होते हैं—( १ ) तन पर पड़ने से । ( २ ) दृष्टि में पड़ने से । ( ३ ) हृदय में पड़ने से । स्यामु ( श्याम )--यह शब्द भी यहाँ तीन अथों में प्रयुक्त हुया है--( १ ) श्याम वर्ण वाले श्रीकृष्णचंद्र । ( २ ) श्रीकृष्ण चंद्र । ( ३ ) काले रंग वाला पदार्थ अर्थात् कल्मष, पातक, दुःख, दारिद्रादि, जिनका रंग कवि-परिपाटी मैं काला नियत है । उपादान लक्षणा शक्ति से ‘श्याम' का अर्थ श्याम रंग का पदार्थ होता है, जैसे ‘सुरंग दौड़ता ह' वाक्य * *मुरंग' शब्द का अर्थ सुरंग घोड़ा होता है । फिर साहित्य की परिपाटी के अनुसार काले पदार्थ से पातक, कल्मष इत्यादि का ग्रहण हो जाता है । हरित-दुाने ( हरित-द्युति )—इस शब्द के भी इस दोह में तीन अर्थ ग्रहण किए गए हैं--( १ ) हरे रंग वाला । ( २ ) हराभरा, डहडहा अर्थात् प्रसन्न-वदन । ( ३ ) हृतद्युति, गतद्युति, हतप्रभ अर्थात् तेज-हीन, प्रभा-शून्य, अथवा भयंकरता-रहित । द्युति का अर्थ नाटक में भयंकर चेष्टा भी होता है । इस अर्थ में 'हरित' शब्द हृत का अपभ्रंश है ॥ ( अवतरण )--अपनी सतसई की निर्विघ्न समाप्ति की कामना से कवि, इस मंगला चरण-रूप दोहे में, श्रीराधिकाजी से सांसारिक बाधा दूर करने की प्रार्थना करता है । सतसई ६ यद्यपि और रस के भी दोहे हैं, तथापि प्रधानता श्रृंगार ही रस की है । इसके अतिरिक्र श्रृंगार रस मैं सब रस की स्थायियाँ संचारी हो कर संचरित होती हैं, जिसके कारण वह रसराज कहलाता है । अतः सतसई में शृंगार रस के मुख्य प्रवर्तक श्रीराधाकृष्ण ही का मंगलाचरण रहना समीचीन है । श्रीराधा तथा श्रीकृष्ण मैं भी, श्रृंगार रस मैं, प्रधानता श्रीराधिकाजी ही की है, और कवि जिस संप्रदाय का अनुयायी था, उसमें भी श्रीराधिकाजी ही प्रधान मानी जाती हैं । अतः उसने श्रीराधिकाजी ही से अपनी ‘भव-बाधा' हरने की प्रार्थना की है ( अर्थ )-जिसके तन की झाँई पड़ने से श्याम हरित-द्युति हो जाता है, “राधा नागरि सोइ' (हे वही राधा नागरी, अथवा वही राधा नागरी ) मेरी भव-बाधा हरो (तुम हरो, अथवा हरें ) ॥ इस दोहे मैं ‘राधा नागरि' पद संबोधन भी माना जा सकता है, और प्रथमपुरुष-वाची भी, क्याँकि ‘हरो' क्रिया का अन्वय, प्रार्थनात्मक वाक्य मैं, मध्यम पुरुष से भी हो सकता है, और प्रथम पुरुष से भी । फिर मंगलाचरण में, आराध्य देवता से, मध्यम पुरुष तथा प्रथम पुरुष, दोन ही रूप में प्रार्थना करने की प्रणाली प्रशस्त है ॥ यह दोहा बिहारी की प्रतिभा का अत्युत्कृष्ट उदाहरण है । इसमें कवि ने 'झाँई','स्याम' तथा ‘हरित-दुति' शब्द के तीन तीन अर्थ रख कर एक ही वाक्य से तीन भाव निकाले हैं, जो तीन ही उसके इष्टार्थ के साधक हैं। पहला अर्थ तो इस दोहे का यह हुआ: हे व राधा नागरी, जिसके तन की परछाँही अर्थात् आभा पड़ने से श्याम वर्ण वाले श्रीकृष्णचंद्र हरे रंग की चुत वाले हो जाते हैं , मेरी भव-बाधा हो । | इस अर्थ से कवि श्रीराधिकाजी के शरीर की गुराई की प्रशंसा करता है कि वह ऐसे सुनहरे रंग की है कि उसकी आभा पड़ने से श्रीकृष्ण चंद्र का श्याम रंग हरा हो जाता है । पीले तथा नीले रंग के मेल से हरे रंग का बनना लोक-प्रसिद्ध ही है । इसी भाव को कवि ने अपने "नित प्रति एकत