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पृष्ठ:बिहारी-रत्नाकर.djvu/६३

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बिहारी-रत्नाकर

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बिहारी-रत्नाकर | ( अर्थ )-[देखे, कैसी चातुरी से ये दोनों गुरुजन से भरे हुए भवन में आँखों ही में सब [ अपने अभीष्ट की ] बात कर लेते है ( अपने अभिप्राय परस्पर प्रकट कर देते हैं )। कभी कुछ | कहते ह, [कभी ] नटत हो ( निषेध करते हैं ), [कभी ]रीझते हैं, [कभी ] खीझत हो, [ कभी किर] मल कर लेते हैं, [कभर ] खिलते हं ( प्रफुल्लित होते हैं ), [ और कभी ] लजात हें ॥ अथवा पूर्वार्ध का अर्थ ये किया जाय-- | [ नायक कुछ ] कहता है ( रति की प्रार्थना करता है ), [जिस पर नायिका “मन में भावै, मुड़ी हिलावें न्याय स ] नटती है ( निषेध करती है )। [ नायक उसकी इस निषेध करने की चेष्टा पर ] रीझता है, [ तब नायिका उसकी रीझने की चेष्टा पर बनावट से ] खीझती है। फिर दोना ] मेल कर लेते हैं, जिस पर नायक, नायिका के चटपट खीझ छोड़ देने पर,]हँस देता है, [और नायिका उसके हँस देने पर ] लजित हो जाती है।


------ वाही की चित चटपटी, धरत अटपटे पाइ ।

लपट वुझावत विरह की कपट-भरेङ आइ ॥ ३३ ॥ चटपटी= उत्कट अभिलाषा के कारण कोई काम करने में यातुरता ॥ अटपटे = कहीं के कहीं, लड़खड़ाते हुए । लपट = ज्वाला ।। ( अवतरण )-उत्तम। खंडता की उक्रि नायक से ( अर्थ )-[जिसके यहाँ रात भर रहे हो.] उसी [ से फिर मिलने ] की [ तुम्हारे ] चित्त में [ तुरता है, [ इसी लिए तुम ] अटपटे पाँव रखते हो। [ पर तो भी मुझे कुछ दुःख नहीं है, क्याकि तुम ता] कप:-भरे भी आ कर [ मेरी ] विरह-ज्वाला बुझात हो [ तात्पर्य यह है कि सपत्नी का दुःख मुझे तुम्हारे दर्शन-सुख के आगे भूल जाता है ] ॥ लखि गुरुजन-बिच कमल सौं सीसु छुवायौ स्याम । हरि-सनमुख करि आरसी हियँ लगाई बाम ॥ ३४ ॥ ( अवतरण )-नायक और नायिका की चेष्टा सखी सखी से कहती है ( अर्थ १. ) -[ नायिका का ] गुरुजनों के बीच में देख कर श्याम ने [ अपना ] सिर कमल से छुचाया ( पाँव पड़ने की चेष्टा कर के अपना अनुराग प्रकट किया )। बाम (वामा अर्थात् नायिका ) ने [ वह भाव समझ कर अपनी ] आरसी, हरि ( नायक ) के सामने कर के, हृदय में लगा ली ( आरसी में नायक का प्रतिबिंव ले कर उसे हृदय में लगाने से यह सूचित किया कि म तुमको अपने हृदय में बसाती हैं)॥ अथवा य अर्थ किया जाय ( अर्थ २ ) [नायिका को] गुरुजनों के बीच में देख कर श्यामने [अपना] सिर कमल से छुपाया पाँव पड़ने की चेष्टा कर के मिलने की प्रार्थनासूचित की ) । बाम ( वामा अर्थात् १. भरे उर ( २ ) । २. छिरायो ( २ ) ।।