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बिहारी-रत्नाकर कृष्ण कवि की अभिप्राय इसी कटोरी से है । यह शब्द और कहाँ देखने में नहीं आया, अतः इसके मूल रूप तथा अर्थ के विषय में निश्चय-पूर्वक कुछ नहीं कहा जा सकता । परंतु यह अर्थ यहाँ लगता बहुत अच्छा है। यदि कृष्ण कवि का अर्थ ठीक माना जाय, तो इसका 'कौल' शब्द से, जो कि एक तांत्रिक संप्रदाय का वाचक है, अथवा ‘कवल' शब्द से, जो कटोरा-वाचक है, किसी प्रकार बनना संभव है । प्रतीत होता है कि बिहारी के समय मैं भी यह शब्द, एक क्रिया विशेष से संबंध रखने के कारण, सर्वसाधारण में प्रचलित नहीं था । अतः कृष्ण कवि को तो यद्यपि इसका ठीक अर्थ ज्ञात था; किंतु अनवर-चंद्रिकाकारों को इस शब्द के अर्थ मैं भ्रम हुश्रा, और उन्होंने इसका पाठ ‘कविलनुमा' कर लिया । बाद को और टीकाकारों ने भी वैसा ही किया । फारसी भाषा में 'क्रिब्लःमा' दिक्प्रदर्शक यंत्र को कहते हैं । यह ‘कविलनुमा उसी 'क़िब्लःनुमा' का अपभ्रंश है। यद्यपि 'कविलनुमा' पाठ से भी इस दोहे का अर्थ अच्छा लग जाता है, तथापि यहाँ मंत्र की कटोरी का भाव विशेष संगत ज्ञात होता है । अतः हमने, अपनी प्राचीन पुस्तकों के अनुसार, 'कविलनवी' ही पाठ रख कर उसका अर्थ मंत्र की कटोरी किया है ॥ ( अवतरण )--परकीया नायिका की दृष्टि इधर-उधर से घूम फिर कर उपपति ही की ओर जा ठहरती है, जिससे सखी उसका प्रेम बक्षित कर के कहती है | ( अर्थ )-[ तेरी ] यह दृष्टि क्षण मात्र सभी की ओर समुहाती ( सामने जाती ) है, [ पर फिर ] सबको पीठ दे कर चलती है (सबकी ओर से लौट पड़ती है), [एक ] उसी [ नायक ] की ओर [ जा कर ] कविलनवी ( मंत्र की कटोरी ) की भाँति ठहरती है [ जिससे लक्षित होता है कि तेरा चितचोर वही है ] ॥ कौन भाँति रहिहै बिरदु अब देखिवी, मुरारि । बीधे मोसौं अइि कै गीधे गीधहिँ तारि ॥ ३१ ॥ बिरलु= प्रशस्ति, किसी उत्तम कार्य करने से प्रसिद्ध नाम ॥ देखिवी= देखने के योग्य है, देखना है ॥ बीधे= बिद्ध हुए, उलझे ॥ गीधे=ललचाए हुए, परचे हुए ॥ गीधहिँ = गिद्ध को, संपाति गिद्ध को । ( अवतरण )-कवि अथवा किसी भक्त का वचन भगवान् से ( अर्थ )-हे मुरारि ! अब देखना है [ कि अापका तारन-] विरद किस प्रकार रहेगा; [ क्योंकि आप एक सामान्य पापी ] गिद्ध ( संयाति ) को तार कर परचे हुए मुझ [महा पापी ] से आ उलझे हैं ।। कहत,नटत,रीझत,खिझतमिलत,खिलत,लजियत । भरे भौन मैं करेत हैं नैननु हाँ सँध बात ॥ ३२ ॥ मिलत= मेल कर लेते हैं ॥ खिलत= खिल उठते हैं, प्रसन्नता प्रकट करते हैं। ( अवतरण )-नायक और नायिका के चातुरी से, आँख की चेष्टा ही के द्वारा, हृदय के सब भी से परस्पर प्रकट कर देने का वर्णन सखी सखी से करती है . १. जानवी ( २ ), देखवी ( ४, ५) । २. प्रानि ( १ ) । ३. खिजत (४, ५ ) । ४. लजि जात ( २ )। ५. कहत ( १ ) । ६. स ( २ ) ।।