पृष्ठ:बिहारी-रत्नाकर.djvu/७३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
३०
बिहारी-रत्नाकर

[ उसके ] नेत्र देख कर [ उस जलाशय के ] कमल लजाते हैं,f और ] झष भी दुखित हो कर जल में छिप जाते हैं । मरी डरी कि टरी बिथा, कंहा बरी, चलि चाहि । रही करहि करहि आति, अब ठंह आदि न आाहि ॥ ५६ ॥ कराहि कराहि दुःखाधिक्य से हाय हाय कर के ॥ ( अवतरण ) -प्रोपितपतिका नायिका की ज इता-दशा का वर्णन सखी सखी से करती है ( अर्थ )-[ हे सखीतू यहाँ ] खड़ी क्या कर रही है, चल कर देख [ तो कि वह ] मरी पड़ी है अथवा [ उसकी ] व्यथा टल गई है । [ वह ] बहुत कराह कराह कर [ एका एकी ]रह गई ( चुप हो गई )। अब L तो उसके ] मुह में आह [ भी ] नहीं है । कहा भयौ, जौ बीबुरे, मों मनु तोमनसाथ । उड़ी जाँड कित हूँ, तऊ गुड़ी उड़ाईक-हाथ ॥ ५७ ॥ गुड़ी मुडी, पतंग ॥ उड़ाइक = उड़ाने वाला ॥ ( अवतरण )- गणिका नायिका गाने बजाने के लिए कई परदेश गई है । वहाँ से अपने प्रेमी वैशिक नायक को उसने पत्र मैं यह दोहा लिखा है ( अर्थ ) यदि [ हम लोग इस समय ] बिछुड़े हैं, तो क्या हु आ [कोई विशेष चिंता तथा घबराने की बात नहीं है, क्यों कि ] मेरा मन [ तो ] आपके मन के साथ [ धंधा हुआ ] है । [ जय श्रापका मन चाहे, मुझे आकर्षित कर सकता है, जैसे ] ड्री ( पतंग ) किसी ओर ( चाहे कहीं) उड़ती हुई चली जाय, तो भी [ वह ] उड़ाने वाले के हाथ में है ( वश में रहती है ) ॥ ¥€ 53 - लवि, लोने लोन के कोइ, होइ न था । कौतु गरीब निवाजिबौ, कित तूयौ रतिराज ॥ ५८ ॥ लोने= लावण्ययुत ॥ लोइनउ = लोचन. ॥ कोइनु= कोयाँ से । ऑाँख की श्याम पुतली के दोनों ओर जो श्वेत भाग होते हैं, वे रुख के कोए कहलाते हैं ॥ गरीख (ग़रीब )-यह शब्द अरबी माषा का है । इसका अर्थ नयाग्रात इत्यादि है । फ़ारसी तथा उर्दू में यह शब्द निर्धन तथा वश-हीन के अर्थ में प्रयुक्त होता है । इसी अर्थ में बिहारी ने भी इसको, इस दोहे में, लिखा है ॥ निवाजिबौ– निवाज़ शब्द फारसी का है, जिसका अर्थ कृपा करना, पालना है । उसी से निवाजिब बना लिया गया है ॥ तूठयौ= तुष्ट हुआ है । रतिराजु = कामदेव ॥ होइनलखि’ का श्रन्वय 'होद' रो है । 'लखि होई' का अर्थ है लक्षित होता है, देख पड़ता है । १. खरी कहा (२)। २. मुख (२, ४ )। ३. जाहु ( २ ), जात (४ )। ४. कितऊ (५)।५. गुट्टो तहूं । २)। ६ . उझाथ ( ५ ) । ७. लोयन ( ४ ) ।