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पृष्ठ:बिहारी-रत्नाकर.djvu/७२

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बिहारी-रत्नाकर

बिहारीरवाकर २ वाम करने के स्य प्रयास किए हैं। पर अपर जो अर्थ लिखा गया है, उसमें न किसी शंका का अवसर है, और न समाधान की आवश्यकता ॥ -858 होमति मुखकरि कामना तुमतेिं मिलन की, लाल । उबालमुखी सी जरति लखि लगनिअगनि की ज्वाल ॥ ५४ ॥ हमति = हवन करती है, आहुती देती है ॥ ज्वालमुखी = ज्वालामुखी ॥ लगनि = चित्त की लगावट, अनुराग ॥ अगनि = अग्नि ॥ ( अवतरण )—पूर्वानुरागिनी नायिका की सखी अथवा दूती नायक से विरह निवेदन करती है ( अर्थ )हे लाल[इ] अनुरागरूपी अग्नि की ज्वालामुखी सी ज्वाला को प्रज्वलित देख करतुमसे मिलने की कामना कर के, [अपने ] पुख को [उस ज्वाला में होमती है । ज्वालामुखी में लोग अनेक प्रन कार की कामनाएँ कर के तमोत्तम शाकल्य की आहुतियाँ देते हैं। सार्यक कसम सार्थक नयन, रग विविध रग गात । झखौ बिलवि कॅरि जात जल) लाकि जनजात लजात ॥ ५५ ॥ सायक—इस शब्द का अर्थ अन्य टीकाकारों ने बाण किया है । पर बाण से झष के छिपने तथा जलजात के संकुचित होने का वर्णन विशेष संगत नहीं है, और न बाण के तीन रंग ही प्रसिद्ध हैं। हमारी समझ में यहाँ सायक का अर्थ सायंकाल करना उचित है। । 'साय' शब्द का अर्थ सायंकाल होता है । 'सायक' शब्द को उसी में स्वार्थिक ‘क’ लग कर बना हुया समझना चाहिए। अथवा 'सायक' शब्द को शायक का अपभ्रंश रूप मान कर उसका अर्थ सुलाने वाला समयअर्थात् सायंकाल, करना चाहिए । कवि सायंकाल की लाली से नेत्रों की लाली की उपमा देते भी हैं। स्वयं बिहारी में भी ४१० अंक के दोहे में ऐसा किया है । मायक = माया करने वाले नेत्रों के पक्ष में इसका अर्थ अनेक प्रकार के हावभावादि करने वाले, और सायंकाल के पक्ष में अनेक प्रकार के रंग बदलने में निपुण होता है । सायंकाल को 'मायक' इस कारण भी कहा जा सकता है कि उस समय मायावी जन माया विशेषतः फैलाते हैं, और वह समय सुहवना भी होता है । निबिध ढंग = तीन प्रकार के रंग अर्थात् श्वेत, श्याम एवं अरुण । नेत्रों में यह तीनों रंग वर्णित होते हैं, और सायंकाल के समय भी ये तीनों रंग आकाश में दिखलाई देते हैं ॥ अखौ = झाष भी ॥ बिलाल = दुखी हो कर ॥ दुरि जात जल = जल में छिप जाते हैं। मछलियाँ दिन को आहार की खोज में इधर उधर विचरती और जलतल पर आती जाती रहती हैं, पर सायंकाल को जल के भीतर पृवी परआश्रय लेती हैं. खजात = संकुचित होते हैं। संध्या समय कमल का संकुचित होना प्रसिद्ध ही है । ( श्रवतरण ) —बूती नायिका को किसी जलाशय के तट पर, संकेतस्थल में, बैठा कर और नायक के पास जा कर, उससे नायिका के नेन्नों की प्रशसा करती हुई, उसके उक्त स्थान में स्थित होने का प्रांत व्यंजित करती है ( अर्थ ): -सायंकाल के समान मायावी, [ तथा ] तीन रंगों से रंगे हुए गाव वाले १: साहुक ( १ ) । २. पाइक ( 4 ), नायक (५)। ३ जल जात दुरि (२ ) ।