सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:बिहारी-रत्नाकर.djvu/८३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
४०
बिहारी-रत्नाकर

बिहारीरवाकर ( अवतरण ) -सपत्नी पर नायक की प्रीति होते देख कर नायिका विनय करती है। ( अर्थ )-मुझको दिया हुआ [ तथा ] भरा हो चुका हुआ [मन ] जो [मेरे] जी के साथ मिल कर रहता है, अथवा जो मिल कर ( जिसके मिलने के कारण ) [ मेरा ] जी [ मेरे ] साथ रहता है, उस मन को बाँध कर ( बरबस ), हे प्रियतम, सपनी के थ में मत किए [ क्योंकि मेरा जी उससे ऐसा मिल गया है कि उसके साथ वह भी चला जायगr] ॥ कुंज-भव तजि भवन को चलिी नंब किसोर। फूलति कली गुलाब की, चटकाहट चहुं ओोर ॥ ८४ ॥ )—उधपति ने परकीया के साथ रात भर कुंजभवन में विहार किया है, और सबेरा होने पर भी वह प्रमाधिक्य के कारण उसको अंक में भरे हुए है । नायिका कुलकान के भय से नायक का ध्यान प्रातः ाद्ध होने पर दिला कर घर चलने का प्रस्ताव करती है । ( शर्थ )- नंदकिशोर,[ अव] ज-भवन को छोड़ कर भवन को चलिए [देखिए] गुल।त्र की कली फूल रही है, [ और उसकी ] चारों ओर चटकाहट [ हो रही है ] ॥ गुलाब प्रातःकाल फूलता है, और फूलने के समय कलियों के चटकने से चटचट शब्द होता है । इस चटकाहट का वर्णन बहुत से कवियों ने किया है । कह त्ति न देवर की कुवैत कुलतिय कलह डति । पंजरगत मंजारढिग सुक क्यों मुकति जाँति ॥ ८५ ॥ कुबत = बात, खुटाई ॥ जरगत ८ पिंजड़े में पड़े हुए ॥ मजारढिग = बिल्ले के समीप स्थित ॥ ( अवतरण )--देवर अपनी भौजाई से अनुचित प्रेम करना चाहें ता है । । पर भौजाई पतित्रत। तथा सुशीला है, अतः बड़ी चिंतित है। । यदि व ई देवर की खुटाई नहीं कहती, तो उसे भय है कि कहींअवसर पर कर, वह उसको आलिंगन इत्यादि न कर ले, और यदि कहती है, तो भाई भाई में तथा देवर देवरानी में कल द होता है। । इसी अंचल में पड़ी हुई वह सूखती जाती है । उसकी इस शव का वर्णन सखी सखी से करती है। ( अर्थ )-[ वह ] कुलवधू ( सुशीला, पतिव्रता ) कलह से डरती हुई देवर की खोटी बात नहीं कहती ( बिदित नहीं करती ), [ और 1 विल्ले के पास स्थित पिंजरे में बंद चुग्गे की भाँति [ दिन दिन ] सूख जाती है । औरै भाँति अi sथ ए चौसरुचंदलु, चंदु । पति-आति पारतु वि पति मारतु मारुतु मंटु ॥ ८६ ॥ १ कुमति ( ४ ) २. कुलाह ( २, ४ )। ३. लजाइ (४ )। ४. ल ( ५ )। ५. जाई (५)। ६. नए ( २)