पृष्ठ:बिहारी-रत्नाकर.djvu/८५

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बिहारी-रत्नाकर

बिहा-राफर । संकोच के कारण ‘घट करने के मिथ से, हाथ उठा अपनी मनोहर त्रिवली तथा नाभी मु विखलाई, और फिर सली की आंख बचा, मेरी ओर आंख भर के देख कर गली में चली मई ॥ इस दोहे के भाव से ४२४ अंक के दोहे का भाव मिलता है ॥ देखत बुरे कपूर क्य उपे जाइ जिन, लाल । छिन छिन जाति परी खरी छीन छबीली बाल ॥ ८९ ॥ खुरै = उरा कर । किसी वस्तु के धीरे धीरे व्यय होते होते समाप्त हो जाने को बुराना, उराना अथवा घोराना कहते हैं । यह शब्द संस्कृत शब्द ‘वर से बना है, जिसका अर्थ रोक, ठहराव इत्यादि है । लेखकों तथा टीकाकारों ने इस शब्द के, न समझने के कारण अनेक पाठांतर कर लिए हैं, पर दो प्राचीन पुस्तकों में इसका यही शुद्ध पाठ मिला है ॥ उपे जा =उड़ जाय, लुप्त हो जाय ॥ बाल = बाला ॥ ( अवतरण ) सखी नायिका के विरह में क्षीण होने का वर्णन नायक से करती है ( अर्थ )–हे लाल[ वह ] छबीली बाला क्षण क्षण में अत्यंत क्षीण ( दुबली ) होती जाती है । [ इसलिए डर है कि कहीं ] देखते देखते कपूर की भाँति उरा कर उड़ न जाय ( सर्वथा लुप्त न हो जाय ) ॥ १ सि) उतारि हि हैं, दई तुम ऊँ तिहैिं दिन, लाल । राखति प्रान कर दें। है चुछुटिनीमाल ॥ १० ॥ चुछुटिनी —यह शब्द यहाँ श्लिष्ट है । इसका एक अर्थ चुंघची और दूसरा अर्थ पकड़ने वाली है । दूसरा अर्थ पहिले अर्थ का विशेषण हो कर इस शब्द को साभिप्राय बना देता है, यर्थात् इसका अर्थ पकड़ रखने वाली मुंघची कर देता है । इसी प्रकार का प्रयोग बिहारी ने ६६० अंक के दोहे में भी किया है । ( अक्तरण )-—सखी वचन नायक से- ( अर्थ )–हे लाल, तुमने जो उस विन हंस कर[ और अपने ] उर से उतार कर दी थी, वही एंटिनी ( पकड़ रखने वाली मुंघची ) की माला [ उसके ] मार्गों को कपूर की भाँति रखती है (रक्षित किए रहती है, अर्थात् उछूने नहीं देती ) ॥ कपूर के डब्बे में बहुत लोग धंधची, काली मिर्च अथवा लवंग रख देते हैं, कि इन वस्तुओं के रख देने से कपूर शीघ्र नहीं उठता ॥ -eted कोऊ कोरिक संग्रह, कोऊ लाख हजार । मो संपति जदुपति सदा बिपतिबिदारनहार ॥ ११ ॥ कोरिक ( कोटिक ) = करोड़ के अनुमान ॥ संग्रहो = बटोरो, जोड़ो 7 लाख हजार दस करोड़ ॥ १. द्रे ( २ ), नूर ( ४ ) । २० लो ( ५ ) । ३. उर (४ )। ४, जो (४ ) । ५. ता(४ ) । ६. बिन ( ४ )। ७. लॉ ( ५ ) । ८. जुहटनी (२ ), गुंजा की (४ ), चिहुटनी (५ ) ।