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पृष्ठ:बिहारी-रत्नाकर.djvu/८६

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बिहारी-रत्नाकर

Cकर .श ( अवतरण ) किसी संतोषी अक्ल का वचन स्थमता अथवा किसी मित्र से ( अर्थ ) [ चाहे ] कोई करोड़ [ की संपत्ति ]संग्रह करै[चाहे ] कोई दस करोड़ [ की ], मेरी संपत्ति [ तो ] सदा विपत्ति के विचारण करने वाले यदुपति ( श्रीकृष्ण भगवान ) हैं [ मुझे और किसी संपत्ति की कुछ आकांक्षा नहीं है ]। वैजसुधादीधितिंकला वह लावि, दीठि’ लगा । मनौ अकांसअगस्तिया एके कली सवाइ ॥ है२.in सुधा दीघिति = चंद्रमा ॥ दीठि लगाइ =दृष्टि लगा कर अर्थात् ध्यान दे कर ॥ आगस्सिया ( अगस्तिका ) अगस्ति वृक्ष, जो कि शरदगम में कालियाना आरंभ करता है । ( अवतरण )-नायक र नायिका ने शरदागम के शुक्र पक्ष की द्वितीया को, चंद्रास्त के समय, किसी अगस्य के वृक्ष के पास मिलने का संकेत बंद रक्खा है । आज वही दिन है। चंदमा दर्शन दे कर अस्ताचल को जा रहा है । नायक की दूती नायिका के पास आ, और उसको गुरुजनाँ मैं बैठी , हैज का चंद्रमा दिखलाने के ब्याज से, उसको नियत दिन का ध्यान दिलाती है, और चंद्रमा की डपमा अगस्य की कली से दे कर संकेतस्थल का स्मरण कराती है ( अर्थ ) दृष्टि लगा कर [ तू] वह क्रूज के चंद्रमा की कला देख[ जो ऐसी शोभित है ] मानो आकाश-रूपी अगस्य के वृक्ष में एक ही कलीं दिखलाई देती है। अगस्त्य शरखागम के आरंभ में फूलता है । वह समय बड़ा सुखब माना जाता है । ‘अगरूप मैं मानो एक ही कली दिखलाई देती है," यह कह कर दूती बयंजित करती है कि यह अवसर तेरे लिए .वैसा ही सुखद है, जैसा अगस्त्य में कली आना आरंभ होने का समय होता है। इसी उपेक्षा से वह शरद शतु के प्रथम शुक्ल पक्ष का होना भी दिखलाती है । -& हु8 --- गदराने तन गोरटी, ऐपन-लिलार । कुव्य है, इठलाइ, इग करै रॉचारि सुवर ॥ ३ ॥ गदराने = पकने पर छाए , जवानी पर आए हुए ॥ गोटी= गोरे शरीर वाली’॥ पेपन = चावल और हलदी को पानी में पीस कर बनाया हुआ एक प्रकार का अवलेपन ॥ इठयौ वार नियाँ जब इठलाती अथवा किसी को बिराती हैं, तो दोन हाथों को मुट्ठी बाँध कर कटिस्थल पर रख लेती हैं। इस क्रिया को झूठा देना कहते हैं ॥ वार = चोट, आक्रमण ॥ ( अवतरण ) किसी गंवार स्त्री को इठलाते देख कर नायक स्वगत कहता है ( अर्थ ) [ यह ] गदाए हुए तन वाली गोरी सँवारीजिसके ललाट पर घेपन का आड़ा तिलक लगा हुआ है, ऐंठा के, इठला कर ढगों से [ कैसी ]ख( सबीअन्नूक ) वारकरती है । १ डीवि ( २, ४ )। २. अगास (५ )। ३० मार (२, ४ )