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पृष्ठ:बिहारी-रत्नाकर.djvu/८९

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बिहारी-रत्नाकर

४६ विदौरा कर ( अर्थ )विरह की ज्वाला से वलसी हुई [ उसकी ] स्नेह-लता किंचिन्मा भी कुम्हिलाती नहीं: [प्रत्युत . नित्यप्रति हरी [ ही ] हरी होती [ और] भली भांति भारत रती जाती है । -9॰8--- हेरि हिंडो गगन हैं परी परी सी टूटि। धरी धाइ पिय बीच हीं, करी खरी रस लुटि ॥ ३१ ॥ हिंडोरे गगन ने हिंडोलेरूपी नाकाश से ॥ परी सी= श्रप्सरा सी करी खरी= खड़ी कर दी । ( अवतरण ) नवोढ़ा नायिका सखियों के साथ हिंडोला झूल रही थी । इतने ही मैं नायक भी वहाँ आ पहुँचा । उसको देख कर नायिका हिंडोले पर से भागने के निमित्त कूद पड़ी । प्रियतम ने फुर्ती से उसे बीच ही में लोक लिया, पृथ्वी पर गिरने नहीं दिया, और आलिंगन का रस लूट कर खी कर दिया । सखी का वचन सखी से ( अर्थ ) [ प्रियतम को ]देख कर [ वह ] हिंडेले-आकाश से [मारे शीघ्रता के ] परी सी ट्रट पड़ी ( भागने के निमित्त कूद पड़ी ) । [ यह देख ] प्रियतम ने दौड़ कर बीच ( औषधर ) ही में [उसे ] लोक लिया" गिरने नहीं दिया, और.] रस लूट कर ( आलिंगनादि का सुख ले कर ) [ उसको पृथ्वी पर ] सदी कर दिया ॥ by ) नैक सौं” बानि ता, लख्यी परतु मुर्सी नीठि । चौका-चमकनि-चौंध में परति चैंधि सी डीठि' ॥ १००॥ चौका = भागे के चार दाँत ॥ चौंध= खर्यों में बँधेरी छा देने वाली तड़प ॥ परति चौंधि सी= चैंधिया सी जाती है, अर्थात् तड़प के कारण बँधेरी छाई हुई सी हो जाती है । ( अवतरण ) -नायक पर अपराधी होने की शंका कर के नायिका मुसाकिराहटबारा कुछ मान सूचित करती है, जिससे नायक की आंखें संकुचित हो जाती हैं। यह देख कर सखीबड़ी चतुरी से, इस बोहे के द्वारा, नायक पर तो यह प्रकट कर के कि नायिका का स्वभाव ही मुसाफिराते रहने का है, उसका संकोच छुपाया चाहती है, जिसमें उसके संकोच से उसके सिर अपराध सिद्ध न हो जाय, और नायिका से नायक के सामने न देख सकने का कारण उसके बाँत की चमक बतलाती है, जिसमें यह उसको संकोच के कारण अपराधी न निर्धारित कर ले ( अर्थ )–[ के सखीतू अपनी ] हँसई ( हंसते रहने की ) बान ( प्रकृति ) बैंक छोड़ दे। [ इस प्रकृति के कारण तेरा ]मुख नीठि ( कठिनता से ) दिखलाई देता है? [ क्योंकि तेरे ] चौके की चमक की चकाचौंध में आंखें चौं धिया सी जाती हैं ।


प्रगट भए ब्रिजराजकुल, मुबस बसे ब्रज आाहू । मेरे हरी कस सव, केसेब केसंवरार ॥१०१ ॥ १. दीठि (१ )। २. केसौ ( १, २ )।