पृष्ठ:बिहारी-रत्नाकर.djvu/९९

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बिहारी रत्नाकर

पर ] नित्यप्रति [ जो उसका ] श्वासा-रूपी हंस बच जाता है, तो इसमें ( इस बच जाने में )[ यह ] अनुमान मानो ( ठीक समझो )[ कि ] विरहाग्नि की लपटों ( ज्वालाओं ) के कारण मृत्यु-रूपी संचान [ उस पर ] झपट नहीं सकता ( अर्थात् उसकी विरह ज्वाला ऐसी कराल है कि उससे डर कर मृत्यु भी पास नहीं आती ) ॥ थाकी जतन अनेक करि, नैक न छाति गैल । करी खरी दुयरी ठ लगि तेरी चाहचुरैल ॥ १२५ ॥ ( अवतरण ) सखी नायक से नायिका का विरह निवेदन करती है ( अर्थ )तेरी चाह-रूपी चुडैल ने लग कर उसको भली भाँति दुबली कर दिया है । [ मैं ] अनेक यक्ष कर के थक गई [ पर वह ] किंचिन्मात्र [ भी ]रौल ( , पीछा ) नहीं लाज गहौ, बेकाज कत घरि रहे, घर जाँहि । गोरख चाहत किंत हैौ, गोर सु चात नाँहि ॥ १२६ ॥ गोर—पहिला 'गोरस' शब्द श्लिष्ट है । इसके दो अर्थ हैं—( १ ) वाक्यविनोदबतरस ।(२ ) इंद्वियरसकामक्रीड़ा । दूसरे 'गोरस' शब्द का अर्थ दूधदही इत्यादि है । ( अवतरण )—यह दोहा स्वयंदूतिका नायिका का वचन नायक से है । इससँ वह श्लेषद्वारा नायक को अपना अभिप्राय समझा । देती है, और संग वाकियों की समझ में नायक को रोकने से वार्जित करती है। यही नहींनायक से भी वह ऊपर से वर्जन ही करती है। सामान्यतः तो वह यह कहती है ( अर्थ १ )ई , दही इत्यादि का दान तो हम दे चुक , अब तुम हमें ] थिा क्यों घेरे हुए हो, लज्जा धारण करो ( पैंथा रोकने से विरत हो )। [ अब ] हम लोग घर जाएँ ( इम लोगों को घर जाने दो )।[तुम तो] गोरस (वाकय विनोदव्यर्थ के झगड़े का स्वाद ) चाहते फिरते हो, [ वास्तव में ] गोरस ( दूधदही इत्यादि ) नहीं चाहते [ जिसके दे देने से पीछा छूटे। दूधदही इत्यादि का माँगना तो छेड़ के निमित्त पक व्याज मात्र है ]॥ पर वह अपना आंतरिक अभिप्राय नायक को यह समझाती है ( अर्थ २ )" हम समझ गईं, तुम ] गोरस ( दूधदही इत्यादि ) नहीं चाहते, [ प्रत्युत ] गोरस ( इंद्रियरस ) चाहते फिरते हो । [ तो फिर इस रास्ते में ]था क्यों घेर रहे हो । लजा धारण करो ( अर्थात् इस बात को प्रकट न होने दो )। [ अब हम ] घर जाएँ ( अब हमको घर जाने दो ) [ यदि तुम्हारा यही अभिप्राय है, तो तुम गुप्त रीति से वहाँ आना ]। नायिका बसी चातुरी से, तर्जन करते हुए वचनद्वारा, नायक को यह समझा देती है कि मैं तुम्हारा अभिप्राय सम और स्वयं तुम पर अनुर हो गई हैं, पर मुझसे तुम्हें गुप्त रीति से मिलना चाहिए। इस प्रकार मार्ग में छेडछाल करना अनुचित है । इधर तो वह और सुनने वाल की जान में नायक १ परि ( ५ )।२. फिरति ( ५ )। ३. चाहति (५ ) ।