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बिहारी-सतसई
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अन्वय—सखिनु कैं टोल चाले की बातैं चलीं सुनत गोऐंहू लोचन हँसत कपोल बिहँसत जात।

चाले=गौना। बातैं चली=चर्चा छिड़ी। टोल=टोली, गोष्ठी, झुंड। गोऐंहू=छिपाने पर भी। लोचन=आँखें। बिहँसत=खिलते।

सखियों की टोली में 'गौने की बातचीत चल रही है'—यह खबर सुनकर (प्रसन्नता को) छिपाने (की चेष्टा करने) पर भी (प्रीतम के मिलन के उत्साह में नायिका की) आँखें हँसती हैं, और गाल खिलते जाते हैं— यद्यपि लाज के मारे खुलकर नहीं हँसती, तथापि उसकी आँखों में और गालों पर आनन्द का प्रभाव (विकास) स्पष्ट दीख पड़ता है।

मिसि हीं मिसि आतप दुसह दई और बहकाइ।
चले ललन मनभावतिहिं तन की छाँह छिपाइ॥३२०॥

अन्वय—मिसि-ही-मिसि दुसह आतप और बहकाइ दई, ललन मनभावतिहिं तन की छाँह छिपाइ चले।

मिसि=बहाना। आतप=धूप। और=औरों को। दुसह=नहीं सहने योग्य। मनभावतिहिं=चहेती स्त्री के पास। छाँह=छाया।

बहाने-ही-बहाने में (उस) कड़ी धूप में दूसरी (सखियों) को बहका दिया—उस स्थान से हटा दिया। फिर ललन (श्रीकृष्ण) प्यारी (राधिका) को शरीर की छाया में छिपाकर (जिससे उसे धूप न लगे) चल पड़े। (अद्भुत आलिंगन!)

लाई लाल बिलोकियैं जिय की जीवन-मूलि।
रही भौन के कोन मैं सोनजुही-सी फूलि॥३२१॥

अन्वय—लाल, लाई जिय की जीवन-मूलि बिलोकियैं। भौन के कोन मैं सोनजुही-सी फूलि रही।

लाई=ले आई। जिय=प्राण। जीवन-मूलि=संजीवनी बूटी। भौन=घर। सोनजुही=पीली चमेली। फूलि=प्रफुल्ल, प्रसन्न।

हे लाल! मैं बुला लाई हूँ, अपने प्राण की संजीवनी बूटी को देखिए— जिसके लिए आपके प्राण निकल रहे थे, उस (प्राण-संचारिणी) नवयुवती को