पृष्ठ:बिहारी-सतसई.djvu/२०८

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बिहारी-सतसई १८८ अन्वय-अपने कर मोतिनु गुह्यो हठि हितु करि सौति प्रीतम लियौ जु सिंगारु कियौ हरा हर-हारु भयो। हित =प्रेम । सिंगारु=शृंगार । गुह्यौ= गूंथकर । हरा = हार, माला । हर-हारु = शिव की माला, सर्प की माला । अपने हाथों से मोतियों की माला गूंथकर हठ और प्रेम करके सौतिन ने प्रीतम के हृदय का जो शृंगार किया-प्रीतम के हृदय को उस मोतियों की माला से आभूषित किया-सो (वह मोतियों की माला) नायिका के लिए सर्प की माला (-सी दुःखदायिनी) हुई । विथुस्थौ जावकु सौति पग निरखि हँसी गहि गाँसु । सलज हँसौंही लखि लियौ आधी हँसो उसाँसु ॥ ४७१ ।। अन्वय-सौति पग विथुस्यौ जावकु निरखि गाँसु गहि हँसी, सलज हँसौंही लखि आधी हँसी उसाँसु लियो । चिथुरथौ = पसरा हुआ । जावकु = महावर । गाँसु गहि = ईर्षा से, डाह से । उसाँसु = ऊँची साँस, उसाँस, दीर्घ निःश्वास । (अपनी) सौतिन के पैरों में पसरा हुआ महावर देख ( उसे फूहड़ समझ) ईर्षा से हँसने लगी। (किन्तु अपनी इस हँसी के कारण) सौतिन को लजीली होकर हँसते देख (यह समझा कि यह बेढंगा महावर नायक ने लगाया है ) आधी हँसी में ही (दुःख से ) लम्बी साँस लेने लगी। बाढ़तु तो उर उरज-भरु भरि तरुनई विकास । बोझनु सौतिनु के हियँ प्रावति रुधि उसास ॥ ४७२ ।। अन्वय-तरुनई बिकास मरि उरज-भरु बाढ़तु तो उर, बोझनु सँधि उसास श्रावति सौतिनु के हियें । उर= छाती । उरज-भरु %D कुचों का भार ! तरुनई=जवानी। बिकास = खिलना । बोझनु =बोझ से। हिय हृदय में । उसास = उच्छवास, गर्म आह, 'लम्बी साँस, दुःख-भरी साँस । जवानी के विकास से भरकर कुचों का भार बढ़ता जाता है तुम्हारी छाती