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बिहारी-सतसई
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अन्वय—अपने कर मोतिनु गुह्यौ हठि हितु करि सौति प्रीतम लियौ जु सिंगारु कियौ हरा हर-हारु भयौ।

हित = प्रेम। सिंगारु = शृंगार। गुह्यौ = गूँथकर। हरा = हार, माला। हर-हारु = शिव की माला, सर्प की माला।

अपने हाथों से मोतियों की माला गूँथकर हठ और प्रेम करके सौतिन ने प्रीतम के हृदय का जो शृंगार किया—प्रीतम के हृदय को उस मोतियों की माला से आभूषित किया—सो (वह मोतियों की माला) नायिका के लिए सर्प की माला (सी दुःखदायिनी) हुई।

बिथुर्यौ जावकु सौति पग निरखि हँसी गहि गाँसु।
सलज हँसौंहीं लखि लियौ आधी हँसी उसाँसु॥४७१॥

अन्वय—सौति पग बिथुर्यौ जावकु निरखि गाँसु गहि हँसी, सलज हँसौंही लखि आधी हँसी उसाँसु लियौ।

बिथुर्यौ = पसरा हुआ। जावकु = महावर। गाँसु गहि = ईर्षा से, डाह से। उसाँसु = ऊँची साँस, उसाँस, दीर्घ निःश्वास।

(अपनी) सौतिन के पैरों में पसरा हुआ महावर देख (उसे फूहड़ समझ) ईर्षा से हँसने लगी। (किन्तु अपनी इस हँसी के कारण) सौतिन को लजीली होकर हँसते देख (यह समझा कि यह बेढंगा महावर नायक ने लगाया है) आधी हँसी में ही (दुःख से) लम्बी साँस लेने लगी।

बाढ़तु तो उर उरज-भरु भरि तरुनई बिकास।
बोझनु सौतिनु कैं हियैं आवति रुँधि उसास॥४७२॥

अन्वय—तरुनई बिकास भरि उरज-भरु बाढ़तु तो उर, बोझनु रूँधि उसास आवति सौतिनु कैं हियैं।

उर = छाती। उरज-भरु = कुचों का भार। तरुनई = जवानी। बिकास = खिलना। बोझनु = बोझ से। हियैं = हृदय में। उसास = उच्छवास, गर्म आह, लम्बी साँस, दुःख-भरी साँस।

जवानी के विकास से भरकर कुचों का भार बढ़ता जाता है तुम्हारी छाती