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बिहारी-सत्तसई
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नोट—रात में चकवा-चकई एक साथ नहीं रहते।
छिनकु चलति ठिठकति छिनकु भुज प्रीतम-गल डारि।
चढ़ी अटा देखति घटा बिज्जु-छटा-सो नारि॥५६९॥

अन्वय—छिनकु चलति छिनकु प्रीतम-गल भुज डारि ठिठकति, बिज्जु-छटा-सी नारि अटा चढ़ी घटा देखति।

छिनकु=एक क्षण। ठिठकति=रुककर खड़ी हो जाती है। अटा=कोठा, अटारी। बिज्जु-छया=बिजली की दमक।

एक क्षण चलती है, और दूसरे ही क्षण प्रीतम के गलबँहियाँ डालकर ठिठककर खड़ी हो जाती है। (इस प्रकार) बिजली की दमक के समान वह स्त्री कोठे पर चढ़कर (मेघ की) छटा देख रही है।

पावक-भर तैं मेह झर दाहक दुसह बिसेखि।
दहै देह वाकै परस याहि दृगनु ही देखि॥५७०॥

अन्वय—पावक-झर तैं मेह-झर बिसेखि दाहक दुसह, वाकैं देह दहै बाहि दृगनु देखि ही।

झर=(१) लपट (२) झड़ी। दहे=जलना। दृगनु=आँखों से।

आग की लपट से मेघ की झड़ी (कहीं) अधिक जलानेवाली और असहनीय (मालूम होती) है, क्योंकि उस (आग की लपट) के स्पर्श से देह जलती है, और इस (मेघ की झड़ी) को आँखों से देखने ही से (विरहाग्नि भड़ककर देह को भस्म कर देती है)।

कुढँगु कोप तजि रँगरली करति जुवति जग जोइ।
पावस गूढ़ न बात यह बूढ़नु हूँ रँग होइ॥५७१॥

अन्वय—जोइ कुढँगु कोप तजि जग जुबति रँगरली करति यह बात गूढ़ न पावस बूढ़नु हूँ रँग होइ।

कुढ़ँगु=नटखटपन, मानिनी का वेष। कोप=क्रोध। रँगरली=केलि-रंग, विहार। जोइ=देखो। पावस=वर्षा-ऋतु। गूढ़=गुप्त, छिपा हुआ। बूढ़नु=(१) एक लाल कीड़ा, बीरबहूटी (२) बूढ़ियों। रँग=(१) रसिकता, उमंग (२) प्रेम।