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बिहारी-सतसई
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आउ=उम्र, अवस्था। सिराह=बीतती है।

वे भी बेखटके चिरजीवी और अमर कहलाते फिरें जिनकी आयु पावस-ऋतु में एक क्षण के वियोग में भी नहीं बातती—या जो (रसिक जन) इस वर्षा-ऋतु में अपनी प्रियतमा से क्षण मात्र के लिए बिछुड़ने पर भी मर नहीं जाते, वे ही अमर और चिरजीवी पदवी के हकदार हैं।

नोट—प्रेमी कवि ठाकुर ने भी क्या खूब कहा है—"सजि सोहे दुकूलन बिज्जुछटा-सी अटान चढ़ी घटा जोवति हैं। रँगराती सुनी धुनि मोरन की मदमाती सँजोग सँजोवति हैं॥ कवि 'ठाकुर' वे पिय दूर बसैं हम आँसुन सौं तन घोवति हैं। धनि वे धनि पावस की रतियाँ पति की छतियाँ लगि सोवति हैं॥"


अब तजि नाउँ उपाव कौ आयौ सावन मास।
खेलु न रहिबो खेम सौं केम-कुसुम की बास॥५७५॥

अन्वय—अब उपाव कौ नाउँ तजि, सावन मास आयौ, केम-कुसुम की बास खेम सौं रहिबो खेलु न।

नाउँ=नाम। उपाव=उपाय, यत्न, तरकीब, युक्ति। खेम=क्षेम, कुशल। केम-कुसुम=कदम्ब का फूल, जिसमें बड़ी भीनी-भीनी और मस्तानी सुगन्ध होती है।

अब उपाय का नाम छोड़ो—उस बाला के फँसाने की युक्तियों को त्यागो, क्योंकि सावन का महीना आ गया। कदम्ब के फूल की सुगन्ध सूँघकर कुशलक्षेम से रह जाना हँसी-खेल नहीं है—अर्थात् कदम्ब के फूल की गन्ध पाते ही वह पगली (मस्त) होकर अपने-आप तुमसे आ मिलेगी।


बामा भामा कामिनी कहि बोलौ प्रानेस।
प्यारी कहत खिसात नहिं पावस चलत बिदेस॥५७६॥

अन्वय—प्रानेस बामा मामा कामिनी कहि बोलौ, पावस बिदेस चलत प्यारी कहत नहिं खिसात।

बामा=(१) स्त्री (२) जिससे विधाता वाम हो। भामा=(१) स्त्री (२) मानिनी, क्रुद्धस्वभावा। कामिनी=(१) स्त्री (२) जो किसीकी कामना करे। प्रानेस=प्राणेश, प्राणनाथ। खिसात=लजाते हो।