बिहारी-सतसई २३० आउ% उम्र, अवस्था । सिराह -बीतती है। वे मी बेखटके चिरजीवी और अमर कहलाते फिरें जिनकी आयु पावस-ऋतु में एक क्षण के वियोग में भी नहीं बातती-या जो ( रसिक जन) इस वर्षा- ऋतु में अपनी प्रियतमा से क्षण मात्र के लिए बिछुड़ने पर भी मर नहीं जाते, वे ही अमर और चिरजीवी पदवी के हकदार हैं। नोट-प्रेमी कवि ठाकुर ने भी क्या खूब कहा है-"सजि सोहे दुकूलन बिज्जुछटा-सी अटान चढ़ी घटा जोवति हैं। रंगराती सुनी धुनि मोरन की मदमाती संजोग सँजोवति हैं ॥ कवि 'ठाकुर' वे पिय दूर बसें हम आँसुन सौ तन घोवति हैं । धनि वे धनि पावस की रतियाँ पति की छतियाँ लगि सोवति हैं।" अब तजि नाउँ उपाव को आयौ सावन मास । 15 खेलु न रहिबो खेम सौं केम-कुसुम की बास ॥ ५७५ ॥ अन्वय -~~अब उपाव को नाउँ तजि, सावन मास आयौ, केम-कुसुम की बास खेम सौं रहिबो खेलु न । नाउँ -नाम । उपाव उपाय, यत्न, तरकीब, युक्ति । खेम=क्षेम, कुशल । कदम्ब का फूल, जिसमें बड़ी भीनी-भीनी और मस्तानी सुगन्ध होती है। अब उपाय का नाम छोड़ो-उस बाला के फँसाने की युक्तियों को त्यागो, क्योंकि सावन का महीना आ गया । कदम्ब के फूल की सुगन्ध सूंघकर कुशल- क्षेम से रह जाना हँसी-खेल नहीं है-अर्थात् कदम्ब के फूल की गन्ध पाते ही वह पगली ( मस्त ) होकर अपने-आप तुमसे श्रा मिलेगी। बामा भामा कामिनी कहि बोलौ प्रानेस । प्यारी कहत खिसात नहिं पावस चलत बिदेस ।। ५७६ ॥ अन्वय-प्रानेस बामा मामा कामिनी कहि बोलौ, पावस बिदेस चलत we" प्यारी कहत नहिं खिसात । बामा =(१) स्त्री (२) जिससे विधाता वाम हो । भामा = (१) स्त्री (२) मानिनी, क्रुद्धस्वभावा । कामिनी =(१) स्त्री (२) जो किसीकी कामना करे । प्रानेस = प्राणेश, प्राणनाथ । खिसात = लजाते हो। केम-कुसुम