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बिहारी-सतसई
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बंदी=ललाट पर स्त्रियाँ गोल बिन्दु रचती हैं। सित=उजला। ठाम=स्थान। सोहाये=सुन्दर, सुहावने।

सुन्दर स्थान पर विराजने से (अच्छे-बुरे) सभी सुहावने ही लगते हैं। (नायिका के) गोरे मुख पर लाल, पीली, उजली और नीली (सभी रंगों की) बेंदी अच्छी ही लगती है।

कहत सबै बेंदी दियै आँकु दसगुनौ होतु।
तिय लिलार बेंदी दियै अगिनितु बढ़तु उदोतु॥४१॥

अन्वय—सबै कहत, बेंदी दियैं आँकु दसगुनौ होतु, तिय-लिलार बेंदी दियैं उदोतु अगिनितु बढ़तु।

आँकु=अंक। लिलार=ललाट। अगिनितु=बेहद। उदोतु=कान्ति।

सभी कहते हैं कि बिन्दी देने से अंक का मूल्य दसगुना बढ़ जाता है। (किन्तु) स्त्रियों के ललाट पर बंदी देने से तो (उसकी) कान्ति बेहद बढ़ जाती है।

भाल लाल बेंदी छए छुटे बार छबि देत।
गह्यौ राहु अति आहु करि मनु ससि सूर समेत॥४२॥

अन्वय—लाल बेंदी छए भाल, छुटे बार छबि देत, मनु ससि सूर समेत अति काहु करि राहु गह्यौ।

भाल=ललाट। छुटे=बिखरे। अति आहु करि=बहुत साहस या ललकार करके। ससि=चंद्रमा। सूर=सूर्य।

लाल बेंदी वाले ललाट पर बिखरे बाल भी शोभा देते हैं। (ऐसा मालूम होता है) मानो चन्द्रमा ने, सूर्य के साथ, अत्यन्त साहस या ललकार करके राहु को पकड़ा है।

नोट—यहाँ ललाट चन्द्रमा, लाल बेंदी प्रातःकाल का सूर्य और केश राहु है।

पाइल पाइ लगी रहै लगौ अमोलिक लाल।
भौंडर हूँ की भासि है बेंदी भामिनि-भाल॥४३॥