पृष्ठ:बिहारी-सतसई.djvu/४१

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सटीक : बेनीपुरी
 

अन्वय—अमोलिक लाल लगौ पाइल पाइ लगी रहै, भौंडर हूँ की बेंदी भामिनि-भाल भासि है।

पाइल=पाजेब, नूपुर, पदमंजीर। पाइ=पैर। अमोलिक=अनमोल, अमूल्य। लाल=रत्न। भौंडर=अबरक। भासिहै=शोभा देगी। भामिनी=स्त्री, नायिका।

अनमोल जवाहरात से जड़े होने पर भी पाजेब पैरों में ही पड़ी रहती है। किन्तु (तुच्छ) अबरक की होने पर भी बेंदी नायिका के ललाट पर ही शोमा देगी।

भाल लाल बेंदी ललन आखत रहे बिराजि।
इंदुकला कुज मैं बसी मनौ राहु-भय भाजि॥४४॥

अन्वय—ललन, भाल लाल बेंदी आखत बिराजि रहे, मनौ राहु-भय भाजि इंदु-कला कुंज में बसी।

आखत=अक्षत, चावल। इंदुकला=चन्द्रमा की कला। कुंज=मंगल। भाजि= भागकर।

अहो ललन! उस नायिका के ललाट की लाल बंदी में अक्षत विराज रही है मानो राहु के भय से भागकर चन्द्रमा की कला मंगल में आ बसी हो।

नोट—यहाँ उजली अक्षत चन्द्रमा की कला है, लाल बेंदी मंगल है, (केश राहु हैं)। मंगल का रंग कवियों ने लाल माना है। बेंदी में अक्षत लगाने की प्रथा मारवाड़ में पाई जाती है। बिहारीलाल जयपुर में रहते भी तो थे।

मिलि चन्दन बेंदी रही गौरैं मुँह न लखाइ।
ज्यौं ज्यौं मद-लाली चढ़ै त्यौं त्यौं उघरति जाइ॥४५॥

अन्वय—चन्दन बेंदी गौर मुँह मिलि रही, लखाइ न; ज्यौं-ज्यौं मद-लाली चढ़ै त्यौं-त्यौं उघरति जाइ।

मद-लाली=मस्ती की लाली, जवानी की उमंग या ऐंठ की लाली।

चन्दन की उजली बंदी मुख की गोराई में (एकदम) मिल गई है,वह गोरे मुख पर दीख नहीं पड़ती-चन्दन की उज्जवलता गोराई में लीन हो गई है। किन्तु