पृष्ठ:बिहारी-सतसई.djvu/४१

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१९ सटीक : बेनीपुरी अन्वय-अमोलिक लाल लगौ पाइल पाइ लगी रहै, भौंडर हूँ की बेंदी मामिनि-माल मासि है। पाइल = पाजेब, नूपुर, पदमंजीर | पाइ = पैर । अमोलिक = अनमोल, अमूल्य । लाल = रत्न । भौंडर =अवरक । भासिहै =शोभा देगी । भामिनो स्त्री, नायिका । अनमोल जवाहरात से जड़े होने पर भी पाजेब पैरों में ही पड़ी रहती है। किन्तु ( तुच्छ ) भवरक की होने पर भी बंदी नायिका के ललाट पर ही शोमा देगी। भाल लाल वेदी ललन आखत रहे बिराजि । इंदुकला कुज मैं बसी मनौ राहु-भय भाजि ॥ ४४ ॥ अन्वय-ललन, माल लाल बदी श्रावत बिराजि रहे, मनौ राहु-मय माजि इंदु-कला कुन में बसी । आखत = अक्षत, चावल । इंदुकला = चन्द्रमा की कला । कुज= मंगल । भाजि=भागकर। अहो ललन ! उस नायिका के ललाट की लाल बंदी में अक्षत विराज रही है मानो राहु के भय से भागकर चन्द्रमा की कला मंगल में श्रा बसी हो । नोट- यहाँ उजली अक्षत चन्द्रमा की कला है, लाल बेंदी मंगल है, (केश राहु हैं)। मंगल का रंग कवियों ने लाल माना है। बेंदी में अक्षत लगाने की प्रथा मारवाड़ में पाई जाती है । बिहारीलाल जयपुर में रहते भी तो थे । मिलि चन्दन बेंदी रही गौरै मुँह न लखाइ । ज्यौं ज्यौं मद-लाली चदै त्यौं त्यौं उघरति जाइ ॥ ४५ ॥ अन्वय-चन्दन बंदी गौर मुँह मिलि रही, लखाइ न; ज्यों-ज्यों मद-लाली चढ़े त्या-त्यौं उबरति जाइ। मद-लाली =मस्ती को लाली, जवानी को उमंग या ऐंठ की लाली । चन्दन की उजली बंदी मुख की गोराई में (एकदम) मिल गई है, मुख पर दीख नहीं पड़ती-चन्दन की उज्जवलता गोराई में लीन हो गई है। किन्तु । वह गोरे