पृष्ठ:बिहारी-सतसई.djvu/७६

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. - बिहारी-सतसई पहिरत ही गोरै गरे यौं दौरी दुति लाल । मनौ परसि पलकित भई बौलसिरी की माल ॥ १४४ ॥ अन्वय-गोरै गर पहिरत ही लाल यो दुति दौरी मनौ बौलसिरी की माल परसि पुलकित भई। गरे=गले । परसि= स्पर्श करके । बौलसिरी=मौलसिरी, फूल-विशेष । उसके गोरे गले में पहनते ही, हे लाल, ऐसी चमक ( उस माला में) श्रा गई, मानो ( वह ) मौलसिरी की माला भी उसके स्पर्श से पुलकित हो गई हो-रोमांचित हो गई हो ! कहा कुसुम कह कौमुदी कितक आरसी जोति । जाको उजराई लखें आँख ऊजरी होति ।। १४५।। अन्वय -कहा कुसुम कह कौमुदी पारसी जोति कितक, जाकी उजराई लौं आँख ऊजरी होति । कुसुम = फूल, जो कोमलता और सुन्दरता में प्रसिद्ध है। कौमुदी चाँदनी । आरसी =आईना, दर्पण । आँख ऊजरी होति= आँखें तृप्त हो जाती -प्रसन्न अथवा विकसित हो जाती हैं। फूल, चाँदनी और दर्पण की ज्योति की उज्ज्वलता को कौन पूछे ? ( वह नायिका इतनी गोरी है कि ) जिसकी उज्ज्वलता को देखकर (काली) आँखें उजली हो जाती हैं नोट-'प्रीतम' जी ने इसका अनुवाद यों किया है- कुमुद औ चाँदनी आईनः यह रंगत कहाँ पाये। शबाहत देख जिसकी आँख में भी नूर आ जाये ॥ कंचन तन धन बरन बर रह्यो रंगु मिलि रंग। जानी जाति सुबास ही केसरि लाई अंग ॥ १४६ ।। अन्वय-धन कंचन-तन बर बरन रंग रंगु मिलि रह्यौ, अंग लाई केसरि सुबास ही जानी जाति । धन = नायिका | बरन =वर्ण, रंग। नायिका के सुनहले शरीर के श्रेष्ठ रंग में (केसर का ) रंग मिल-सा गया 1 - ano ।