पृष्ठ:बिहारी बिहार.pdf/१०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

॥ श्रीः ॥ श्रीयुत विविधविरुदावलीविराजमान महाराजाधिराज आनरेवल सर् प्रतापनारायणहिंस बहादुर के. सी. आई ई. अयोध्यानरेश की सेवा में। . कवित्त । | मनिगनमण्डित सु सोर को सुकुट सञ्चु माथे पै सवारे कर मुरली लियो करें । वृन्टर सलोन स्याम सोहने सयाने सुठि सुकवि समूहन की सरस हियो करै ॥ एही महाराज परतापनारायणसिँह तेरी परजा में सदा कुसल कियो करें । शानँद के कन्द दुख दन्ट को मिटाइ तोपै नन्द के नँदन दीठ दया की दियो करे ॥१॥ |कोसलान रेस तोपे वोसलानरेस सदा करुना की कोर करे देवन को सिरताज । पारवतीपति सव वातन में पति राखे परमपवित्र तेरी हियरो करै दराज ॥ सुदावि सुनान सबै सुजसे बढ़ावें तेरो पण्डित महान तेरो मण्डित करें समाज । अधिक बढ़ावै परताप नारायन तेरो एहो परतापनारायनसिंह महाराज ॥ २ ॥ चुटको वनैववार चुहल चलाक चुल्लौ चार जमाये रहैं ते सरकार मैं । छोवारे हँसीकरे हहास के हँसैववारे हिले मिलें गिने जात कहूं सरदार मैं ॥ कञ्चन लुटत कहूँ कञ्चनीप्रपञ्चन मैं रञ्च न विचार देख्यो गुनी उपकार में । । पण्डित मानने को सुकवि सुजानन को दंछो सनमान एक तेरे दरबार मैं ॥३॥ | मिलिबे के हत पाग यासिवे चहत जीलों तौलों सिरपंच मोती झब्बा लहराते हैं। २ धासिष को गोला उपवीत के गहत करहून श्री मुंदरी की छवि छहरात हैं ।। पावत तुरङ्ग श्री मतङ्ग किते चलते हीं अमि औ भवन वन वाटिका सुहात हैं । * शाप की नजर तो परत कछु पाछे पर पहले हीं सुकवि निहाल होइ जात हैं ॥ ४ ॥ । मत गज मद्धारा कोचर मचाय रही आगन विगारे देत इत तो जियो करो। * रङ्ग रङ्गवारे त्यो कुरङ्ग से तुरङ्गन सी वाडा भरि दीनो एजू यामैं का लियो करी ॥ में मनिगन मोतिनको वोझा लादि दोनों ग्रङ्ग साना स करि मति कठिन क्षियो करो। * एको महाराज परतापनारायनसिंह सुकवि स ऐसी अनरीति ना कियो करी ॥ ५ ॥