पृष्ठ:बिहारी बिहार.pdf/११

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गुनगनमण्डित सुपण्डित को देखते ही करत निहाल ऐसो शौढरठरत है।

  • जाचक को दान दे करते अजाचक नै विधि की दरिद्ररेखा छन मैं हरत है ॥

रस को विकास करै काव्य की प्रवास करै जस, को उजास करै आनँद भरत है ।

  • वाह करी जी पै कि कोसल नदेस नै तो दूबे की सुकवि परवाह ना करत है ॥६॥

दौह यादौठ दे के देखते ही दीनन के दुरित उभारे दुख भार दुरिजात हैं। सुकवि सुजानने की कविता सुनत ही मैं सुजस समूह दोऊ शोर लहरात हैं ।। छनक अलाप ही के करत शुनौजन के मानहु अभाग के विलाप अहरात हैं। वाह वाह भाषत ही कोसलान रेस जू के आह आह करि टूरि दारिद पाते हैं ॥७॥ घर घर घुस्यो फिरै घेरत घनाघनन घूमै गिरिकन्दर पुरन्दर के बासा है। फूल्यो सेसफन मैं फिरत फ़हराय रह्यो भेटि रंमाकन्तु अन्त चाहत अकासा हैं ॥ रोम रोम मा रम्यो सशबि सजान हू के छीनत दिगन्तदन्तिदल को अवासा है । लंघत अञ्चल तलातलहू के तले जात वरो सुजस करै अजव तमासा है ॥ ८ ॥ | चन्दा की किरन गहि चढ़ते अकास माहिँ तारने की छूइ गहै भानुछटा छटकी। दिव्दाज विकट कट चटपट थाप सारि सेस के निकट जाय देत ताहि हृटकी ।।

  • सुकवि चमकि चकाचौंध के गहत गैल झट बंसीवट पनिचट गंगातट की ।
  • वा सो उछरि बिधिअटा लीं दिखात खरी सुजस तिहारो है करत कला नट की। ८. ६

| युनियनमण्डित सुपडित हू गावें जाहि परम अखण्डित जो सुन्दर सरस है । जाको नाहिँ मापक जो व्यापक दुनी मैं देख्या सन और वानी को न नामै कछू लस है।

  • सुकवि सुजान घन आनँद निधान जाके ज्ञान अयै ज्ञानी हिय होत परबस हैं ।।

एहो परतापनारायनसिंह महाराज पूर्न परब्रह्म ऐसो रावरो सुजस है ॥ १५ ॥ |.. टूषन-रहित कवि भूजन ज्यों मान पायो सिवराज बीर मरहट्ठा मण्डलस सों । से पायो त्यो विहारी नास गाम सङ्ग मान, घनो जयसिंहबाज जयनंगरनरेस सीं ॥ 4 साल औ दुसाल सङ्ग लान कवि सान पायो महाराज छत्रसाल भूपति सुबेसः स ।।

  • अम्बादत्त सुवा वि त्यों दान सान पायो परतापनारायनसिंह सूप अवधेस सों ॥११॥