पृष्ठ:बिहारी बिहार.pdf/१६५

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विहारिवहार।। दृग उरझत टूटत कुटुम जुरति चतुरसँग प्रीति ।::: परति गाँठि दुरजनहिये दई नई यह रीति ॥ २३ ॥ .. दुई नई यह रीति परत ऐंठन सौतिनहिय । बहु बतन वल परत फसत

  • त्याँ प्रीतम को जिये ॥ लाज परत है ढीली अरु मन खिंच खिंचि सुरझत ।

आँख सुकबि की खुलत लखो दृग साँ दृग उरझत ॥ ३३१ ॥ : ::

है हिय रहति *हई छई नई जुगुति यह जोइ ।। ऑखिन ऑखि लगी रहै देह दुबरी होय ॥ २७४ ॥ .. :: देह दूवरी होइ सदा मन रहत उदासी । बानी थरथर कैंपत और सुधि । बुधि हूं नासी ॥ पावकझर से साँस तपत अकुलात अली जिय। सुकवि दुई यह छई छई कैसी धाँ हैं हिय ॥ ३३२ ॥ : + क्याँ बसिये क्यौं निबहिये नीति नेहपुर नाहिँ । लगालगी लोयन करें नाहक मन बँधि जाहिँ ॥ २७५ ।।। नाहक मन बँधि जाहिँ दुबरे होत अंग अँग । छाती तरफर होत होत । मुख को पीरो सँग ॥ नाम धरयो पुनि जात सबै कुलकानि नसत त्यौं । सुकबि नीति ह्याँ नाहिँ अहो इहिँ पुर बसिये क्यै ॥ ३३३ ॥ . | जात सयान अयान है वे ठग काहि ठरौं न । को ललचाय न लाल के लखि ललंचो नैन । २७६ ॥'. । | लखि ललचौहें नैन खौरचरचनि केसर की । टेढ़ी पचरंग पाग कपोलन जलुफै ढरकी । मन्द हँसत से अधर कनककुण्डल छाबछाजा । सुकबि ऑखि ॐ ॐ ऑखि होत लखि कै रसराजा ॥ ३.३४ ॥..... .

  • * हुई = हाय, ओहो । यह दोहा अनवरचन्द्रिका में नहीं है ।' : .:.:::. :