पृष्ठ:बिहारी बिहार.pdf/१६९

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बिहारीबिहार । उर उरझ्यो चितचोर सौं गुरु गुरुजन की लाज ।..... । चढ़ेः हिँडोरे से हिये किये बनै गृहकाज ।। २८७॥ किये चनै गृहकाज हो कैसें इहिँ भाँती। झोका झोकी दोऊ दिसि रहि

  • परवस दिन राती ॥ आँखें घुमरी खाइ रही किहुँ जात न सुरझ्यो । सुकवि

नेह की डोर फस्यो हरि साँ उर उरझ्यो ॥ ३४७॥...::.::: उन *हरकी हँसि कै उतै इन सौंपी मुसकाय । नैन मिले मन मिलंगयौ दोङ मिलवत गाय ॥२८८ ।। दोऊ मिलवत गाय जीय स जीय मिलायो । दोऊ कपोलन जाल सेद विन्दुन को छायोः ॥ इन बिसराई साँगगहनि बँधि नये नेहगुन । आँधी मटकी राखि सुकवि पुनि दोहि दई उन ॥ ३४८ ।।:: : उन कौ हित उन हीं बनै कोऊ करौ अनेक । | फिरत काकगोलक भयो दुहुँ देहः ज्यौ एक ॥२८९ ॥ । दुहुँ देह ज्यौः एक फिरत नहिँ.परत लखाई । देहौ एकै करन मिलत जनु । पुनि पुनि धाई । सबै भाँति अद्वैत भयो बढ़ि चल्यो नेह नित । सुकवि

कहाँ मैं कहा वहै जानैं उन को हित ॥ ३४६ ॥ .

या के उर औरै कंछ लगी बिरह की लाय । पजरै नीर गुलाब के पिये की + बात बुझाय ॥ २९० ॥ । पिय की वात बुझाय दिये चन्दन लहरावै । दीने चूर कपूर बरूदन जनु । ३ भभकावै ॥ नलिनीदल स चिनगी चमकति चढ़ात मन जुर । सुकबि.पिये - दावानल धस गयो हरि थाके उरः ॥ ३५० ॥ .

  • '* हरकी-हाकौ । * जैसे कौए की दो अँखों में एक ही गोलक (को) फिरता है वैसे दो

देह में एक हो जोव फिरता है.॥ j; वात श्लेष है एक पक्ष में बात = बायु ; दूसरे में बात चर्चा। ककक