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बिहारी बिहार ।

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विहारीविहार ।। सिजपपुरीहलचल ॥ घटीज के जोर रैन दिन कहत गुनी जन । सुकवि । स्याममय भयो जगत छायो पावसघन ॥ ६६७ ॥ पुनः लखि चकईचकवान वान मिलिवे विठुरन की । अटकर कछु कछु परत दिवस अरु रैन दुरन की । झर झर झर के झाँरसंग झिल्ली झनकारन । सुकवि घुमड़ घन घटा बाँधि घमकत पावसघन ॥ ६६८ ॥ पुनः । लखि चकईचकवान भेद कछु जान्यो परतो । जो पुनि कळू प्रकास कोऊ । विधि कहूँ उघरतो ॥ सुकवि महातमतोस ने दीखत अपनो हु तन । ससि। तारा हू कहा घोर उमडे पावसघन ॥ ६६६ ॥

  • तिय तरसहँ चित किये करि सरसॉहैं नेह ।। घरपरसौहें है रहे झरवरसह मेह ।। ५७२ ॥ झरवरसँहें मेह प्राइ कै घेर लियो अव । विजुरीचमकन लखत ऑखि को तेज गयो सवे ।। घर वाहर नहिँ सुझि परत ऐसो अँध्यार किये । सुकवि । विद्युरि के जीव सके किमि हाय पियातिये ।। ६७० ॥

कुढंग कोप तजि सँगरली करति जुवति जग जोई। पावस वात न गृढ़ यह बूढ़नि हूँ हँग होइ ।। ५७३ । । होइ रंग वृन हैं पे एक छदकति लाली । भगत वरपाधार घृमि निरखत में हरियाली । देखते रह मनावन की क्यों सुकवि साज सजि । चञ्चल तिये । घनस्याम हिं लग्नि अव कुटेंग कप तजि ।। ६७४ । । | ०४ ३ ३ इद शुरू नहीं हैं ये ; इत्तम नरो । दालचन्द नै ‘कर दर ६' पाठ रग्छ । ५ ३ ५६ र ३ दिन ए इ १ । •• इट इन्द्र गोप है