पृष्ठ:बिहारी बिहार.pdf/२६१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
१७८
बिहारी बिहार ।

________________

| बिहारविहार ।, *बिषम छषादित की तृषा जिये मतीरनि सोधि । .. अमित अपार अगाधजल मारौ मूड़ पयोधि । ६०२॥ मारा मँड़ पयोधि काज काके वह आवत । तुङ्गतरङ्गनभङ्ग करोरन नाव डुबावत । खारा जल भरि मगर मच्छ भय देत जितेतित । सुकाब पियास फिरत तार पै बिषमवृषादित ॥ ७०३ ॥ अति अगाधं अति ओथरी नदी कूप सर बाय ।। सो ताक सागर जहाँ जाकी प्यास बुझाय ॥ ६०३ ॥ जाकी प्यास बुझाय जहाँ सो ई तिहिँ सागर। जियै जासु जल पीई मतीरा साइ गुन अगर । झरना ही को नीर भयो जो पुर की सम्पति । सु* कबि जलधि विनु काम तरङ्गित अति अगाध अति ॥ ७०४ ॥

  • मीत न नीति गलीति है जो धरिये धन जारि ।

खाये खरचे जौ जुरे ती जरिये करोरि ॥ ६०४ ॥ तौ जरिये करोरि खाइ खरचे जो बाँचै । धन्य धन्य सो धरम करम करि * जो धन साँचे ॥ धिक तिन काँ जो भूख मर्दै फाटे पट सीतन। सुकवि सपथ * य वित्त जोरियो केवहूँ मीत न ॥ ७०५ ॥ " पुनः। । ये करोरि धिक्कार ताहि जो धनधरि गाडै । फूटी हाँड़ि हिँ आँधि अपु नित * पीयत मॉडै ॥ + बालन भूखेन हनै फटे पट, राखै तीतन । सुकवि देव करि * दुरि नाहिँ समुहावै मीतन ॥ ७०६ ॥

  • यह दोहा:शृङ्गारसप्तशती -ौर देवकीनन्दन टीका में नहीं है। थोड़े-जल-का-। ।

यह दोहा देवकीनन्दन टौका में नहीं है ।-गलौत है = अपनी दुर्दशा-करके = कथित होकः॥ * + लड़कों-को-भूखों-मारे ॥ (गा स्त्री के तन परः॥ . ="