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बिहारी बिहार ।

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- | बिहारीविहार। * कच सव सुटि माने ॥ विनु भुपन त्याँ सीसफूल दीने हु जियरमै । सुकवि ने ऑखि अनुराग भये सब सुभग सव समे ॥ ७२९ ।।

  • गिरि हैं ऊचे रसिकमन बड़े जहाँ हजार ।। वह सदा पसु नरनि की प्रेमपयोधि पगार ॥ ६२६ ॥

प्रेमपयाधि पगार हु सों घटि उन क लागे । विरह मेरै नहिं नहिं संजोग । हिय अति अनुराग ॥ सङ्गम हीं सुख गिनत अहें एस जिय कुँचे । सो । समुझे यह सुकवि सु मन जहिं गिरि तें ऊँचे ।। ७३० ।। | सङ्गतिदोष लगे सवनि कह ते साँचे वैन । कुटिलवंकभूसंग भे कुटिलवंकगति नैन । ६२७ ॥ कुटिलबझगति नेन भय हैं नुकुटिसङ्ग में । तिन के सँग पुनि अलुक छये । कुटिलतार में । इन के दिग राह वेन गही पुनि टेढ़ा रङ्गत । टेढ़ी ग्रीवा ३ भई सुकवि परि टेट्टी सङ्गत ॥ ७३१ ।।. मारचन्द्रिका स्यामसिर चढ़ कत करति गुमान । | लवची पायनि पर लुठति सुनियत राधामान ।। ६२८ ॥ सानियत राधामान भयं तु विलुठति चरनन । रज साँ धूसर हात सके | फरि के कवि वरनन । बिग्वारे जात पखरी गरूर जनि करि अतन्द्रिका ।। २ सुकवि ला सके हैं हारमिर सारवान्द्रका ।। ७३२ । । * ॐ ३ : द कपि ॐ सय में नहीं है । • नरदो भाषा न है । ; दोहा ३३१ • १ : ३३ ) मा मग र कर्थियों में भी क्रिया में धा । । वैया व मासु छ । * ॥ ३१ रि : नमसमर रन : मरद ! इदा भी ट्रा६ र ननद यो निठान की नग्नी । ३ नं ४६ ३ ६ ४११: द मं; तिरी १ दत्त नारक हंटा परो । ३४ ६३ तिहारो नग" * * * * * : * * * * * az --. = न 7

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