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बिहारी बिहार ।

बिहारीविहार।

  • रबि बन्द कर जेरि के सुनत स्याम के बैन।

भये हंसौहें सवनि के आत अनखाहें नैन ।। ६५० ॥ अति अनखाहू नेन एक दूजी को देखाति । फरकत आठन दावात सी पुनि हरि क पखात ॥ सुकाबि कान्ह डाट निरख रहे हैं कोप भरी छवि । गुजरि परवस परी लखति पुनि धरनी पुनि राव ॥ १७५८ ।। . . . पुनः ।। . . . . . . | अति अनख नैन कदम दिस पुनि पुनि देखति । पट फहरन फूली सी फुनगिन फिरि फिरि पखति । हिय बहु भायन भयो कम्प रोमञ्च अमन्दौ । सुकबि स्याम हँसि कहत फेर प्यारी रवि बन्दौ ॥ ७५६ ॥ |कन दैबो सौंप्यौ ससुर बहू थुरथी जानि । रूप रहँचटे लगि लग्यो माँगन सब जग आनि ॥ ६५१ ॥ माँगन सब जग आन लग्यो करि भीर कतारी । धनी दरिद सव ललचि चलि परे रूप भिखारी ॥ टरत न टारे ठठक गये भूल घर जब । हे गयो सुकवि जवाल थुरहथी को कन दैबो ॥ ७६० ॥ * : . . . . . . . : | *परतियदोष पुरान सुनि हँसि मुलकी सुखदानि ।। कसि करि राखी मिस्र हू मुखआई मुसकानि ॥ ६५२ ॥ | मुखई मुसकानि मिसर हू कसि करि राखी । सर्बदोषहर रामनाम की कीरति भाषी ॥ बातन हीं चहराय और की और कथा किय । सुकवि चतुर सव समझि गये लखि मुलकति परतिय ॥ ७६१ ॥ में 9 चौरहरण का प्रकरणे ॥ यह दोहा हरिप्रसादु के ग्रन्थ में नहीं है। थुरथी = छोटे हाथवाली = - रहँचटेलालच । यह दोहा हरिप्रसाद के ग्रन्थ में नहीं है ॥ मुलकौ = प्रसन्न हुई ॥ ..... ।